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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-183

जय श्री राधे कृष्ण ……. "राम कृपा बल पाइ कपिंदा, भए पच्छजुत मनहुँ गिरिन्दा, हरषि राम तब कीन्ह पयाना, सगुन भए सुंदर सुभ नाना ।। भावार्थ:- राम कृपा का बल पा कर श्रेष्ठ वानर मानो पंख वाले बड़े पर्वत हो...

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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-182

जय श्री राधे कृष्ण ……. "प्रभु पद पंकज नावहिं सीसा, गर्जहिं भालु महाबल कीसा, देखी राम सकल कपि सेना, चितइ कृपा करि राजिव नयना ।। भावार्थ:- वे प्रभु के चरण कमलों में सिर नवाते हैं । महान बलवान रीछ और...

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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-180

जय श्री राधे कृष्ण ……. "अब बिलंबु केहि कारन कीजे, तुरत कपिन्ह कहुँ आयसु दीजे, कौतुक देखि सुमन बहु बरषी, नभ तें भवन चले सुर हरषी ।। भावार्थ:- अब विलंब किस कारण किया जाए ? वानरों को तुरंत आज्ञा दो...

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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-179

जय श्री राधे कृष्ण ……. "सुनि प्रभु बचन कहहिं कपि बृंदा, जय जय जय कृपाल सुखकंदा, तब रघुपति कपिपतिहि बोलावा, कहा चलैं कर करहु बनावा ।। भावार्थ:- प्रभु के वचन सुन वानर गण कहने लगे - कृपालु आनन्दकन्द श्री राम...

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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-178

जय श्री राधे कृष्ण ……. "उमा राम सुभाउ जेहिं जाना, ताहि भजनु तजि भाव न आना, यह संबाद जासु उर आवा, रघुपति चरन भगति सोइ पावा ।। भावार्थ:- हे उमा! जिस ने श्री राम जी का स्वभाव जान लिया, उसे...

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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-177

जय श्री राधे कृष्ण ……. "नाथ भगति अति सुखदायनी, देहु कृपा करि अनपायनी, सुनि प्रभु परम सरल कपि बानी, एवमस्तु तब कहेउ भवानी ।। भावार्थ:- हे नाथ! मुझे अत्यंत सुख देने वाली अपनी निश्चल भक्ति कृपा कर के दीजिए ।...

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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-176

जय श्री राधे कृष्ण ……. "सो सब तव प्रताप रघुराई, नाथ न कछू मोरि प्रभुताई ।। भावार्थ:- यह सब तो हे रघुनाथ जी, आप ही का प्रताप है । हे नाथ! इसमें मेरी प्रभुता (बड़ाई) कुछ भी नहीं है ।।...

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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-175

जय श्री राधे कृष्ण ……. "साखामृग कै बड़ि मनुसाई, साखा तें साखा पर जाई, नाघि सिंधु हाटकपुर जारा, निसिचर गन बधि बिपिन उजारा ।। भावार्थ:- बंदर का बस यही पुरुषार्थ है कि वह एक डाल से दूसरी डाल पर चला...

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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-174

जय श्री राधे कृष्ण ……. "कहु कपि रावन पालित लंका, केहि बिधि दहेउ दुर्ग अति बंका, प्रभु प्रसन्न जाना हनुमाना,बोला बचन बिगत अभिमाना ।। भावार्थ:- हे हनुमान ! बताओ तो, रावण के द्वारा सुरक्षित लंका और उस के बड़े बाँके...

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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-173

जय श्री राधे कृष्ण ……. "सावधान मन करि पुनि संकर, लागे कहन कथा अति सुंदर, कपि उठाई प्रभु हृदयँ लगावा, कर गहि परम निकट बैठावा ।। भावार्थ:- फिर मन को सावधान कर के शंकर जी अत्यंत सुंदर कथा कहने लगे...

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