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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-203

जय श्री राधे कृष्ण ……. "जो आपन चाहै कल्याना, सुजसु सुमति सुभ गति सुख नाना, सो परनारि लिलार गोसाईं, तजउ चउथि के चंद कि नाईंं ।। भावार्थ:- जो मनुष्य अपना कल्याण, सुन्दर यश, सुबुद्धि, शुभ गति और नाना प्रकार के...

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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-202

जय श्री राधे कृष्ण ……. "पुनि सिरु नाइ बैठ निज आसन, बोला बच पाइ अनुसासन, जौ कृपाल पूँछिहु मोहि बाता, मति अनुरूप कहउँ हित ताता ।। भावार्थ:- फिर वे सिर नवा कर अपने आसन पर बैठ गये और आज्ञा पाकर...

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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-201

जय श्री राधे कृष्ण ……. "सोइ रावन कहुँ बनी सहाई, अस्तुति करहिं सुनाई सुनाई, अवसर जानि बिभीषनु आवा, भ्राता चरन सीसु तेहिं नावा ।। भावार्थ:- रावण के लिए भी वही सहायता (संयोग) आ बनी है । मन्त्री उसे सुना-सुना कर...

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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-200

जय श्री राधे कृष्ण ……. "जितेहु सुरासुर तब श्रम नाहीं, नर बानर केहि लेखे माहीं ।। भावार्थ:- आप ने देवताओं और राक्षसों को जीत लिया तब तो कुछ श्रम ही नहीं हुआ, फिर मनुष्य और वानर किस गिनती में हैं...

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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-199

जय श्री राधे कृष्ण ……. "बैठेउ सभा खबरि असि पाई, सिंधु पार सेना सब आई, बूझेसि सचिव उचित मत कहहू, ते सब हँसे मष्ट करि रहहू ।। भावार्थ:- ज्यों ही वह सभा में जा कर बैठा, उस ने ऐसी खबर...

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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-198

जय श्री राधे कृष्ण ……. "अस कहि बिहसि ताहि उर लाई, चलेउ सभा ममता अधिकाई, मंदोदरी हृदयँ कर चिंता, भयउ क़ंत पर बिधि बिपरीता ।। भावार्थ:- रावण ने ऐसा कह कर हँस कर उसे हृदय से लगा लिया और ममता...

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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-197

जय श्री राधे कृष्ण ……. "जौं आवइ मर्कट कटकाई, जिअहिं बिचारे निसिचर खाई, कंपहिं लोकप जाकीं त्रासा, तासु नारि सभीत बड़ि हासा ।। भावार्थ:- यदि वानरों की सेना आवेगी तो बेचारे राक्षस उसे खा कर अपना जीवन निर्वाह करेंगे ।...

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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-196

जय श्री राधे कृष्ण ……. "श्रवन सुनी सठ ता करि बानी, बिहसा जगत बिदित अभिमानी, सभय सुभाउ नारि कर साचा, मंगल महुँ भय मन अति काचा ।। भावार्थ:- मूर्ख और जगत प्रसिद्ध अभिमानी रावण कानों से उसकी वाणी सुन कर...

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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-195

जय श्री राधे कृष्ण ……. "राम बान अहिगन सरिस, निकर निसाचर भेक, जब लगि ग्रसत न तब लगि जतनु करहु तजि टेक ।। भावार्थ:- श्री राम जी के बाण सर्पो के समूह के समान हैं और राक्षसों के समूह मेंढक...

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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-194

जय श्री राधे कृष्ण ……. "तव कुल कमल बिपिन दुखदाई, सीता सीत निसा सम आई, सुनहु नाथ सीता बिनु दीन्हें, हित न तुम्हार संभु अज कीन्हें ।। भावार्थ:- सीता आप के कुल रूपी कमलों के वन को दु:ख देने वाली...

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