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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-243

जय श्री राधे कृष्ण ….. "अस कहि करत दंडवत देखा, तुरत उठे प्रभु हरष बिसेषा, दीन बचन सुनि प्रभु मन भावा, भुज बिसाल गहि हृदयँ लगावा ।। भावार्थ:- प्रभु ने उन्हें ऐसा कह कर दण्डवत करते देखा तो वे अत्यन्त...

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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-242

जय श्री राधे कृष्ण ….. "श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर,त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर ।। भावार्थ:- मैं कानों से आप का सुयश सुनकर आया हूँ कि प्रभु भव (जन्म-मरण) के भय का नाश करने वाले...

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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-241

जय श्री राधे कृष्ण ….. "नाथ दसानन कर मैं भ्राता, निसिचर बंस जनम सुरत्राता, सहज पापप्रिय तामस देहा, जथा उलूकहि तम पर नेहा ।। भावार्थ:- हे नाथ ! मैं दशमुख रावण का भाई हूँ । हे देवताओं के रक्षक !...

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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-240

जय श्री राधे कृष्ण ….. "सिंघ कंध आयत उर सोहा, आनन अमित मदन मन मोहा, नयन नीर पुलकित अति गाता, मन धरि धीर कही मृदु बाता ।। भावार्थ:- सिंह के से कंधे हैं, विशाल वक्ष:स्थल (चौड़ी छाती) अत्यन्त शोभा दे...

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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-239

जय श्री राधे कृष्ण ….. "बहुरि राम छबिधाम बिलोकी, रहेउ ठटुकि एकटक पल रोकी, भुज प्रलंब कंजारुन लोचन, स्यामल गात प्रनत भय मोचन ।। भावार्थ:- फिर शोभा के धाम श्री राम जी को देख कर वे पलक (मारना) रोक कर...

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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-238

जय श्री राधे कृष्ण ….. "सादर तेहिं आगें करि बानर, चले जहाँ रघुपति करुनाकर, दूरिहि ते देखे द्वौ भ्राता, नयनानंद दान के दाता।। भावार्थ:- विभीषण जी को आदर सहित आगे कर के वानर फिर वहाँ चले, जहाँ करूणा की खान...

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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-237

जय श्री राधे कृष्ण ….. "उभय भाँति तेहि आनहु हँसि कह कृपानिकेत, जय कृपाल कहि कपि चले अंगद हनू समेत ।। भावार्थ:- कृपा के धाम श्री राम जी ने हँस कर कहा - दोनों ही स्थितियों में उसे ले आओ...

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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-236

जय श्री राधे कृष्ण ….. "जग महुँ सखा निसाचर जेते, लछिमनु हनइ निमिष महुँ तेते, जौं सभीत आवा सरनाईं, रखिहउँ ताहि प्रान की नाईं।। भावार्थ:- क्योंकि हे सखे ! जगत में जितने भी राक्षस हैं, लक्ष्मण क्षण भर में उन...

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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-235

जय श्री राधे कृष्ण ….. "जग महुँ सखा निसाचर जेते, लछिमनु हनइ निमिष महुँ तेते, जौं सभीत आवा सरनाईं, रखिहउँ ताहि प्रान की नाईं।। भावार्थ:- क्योंकि हे सखे ! जगत में जितने भी राक्षस हैं, लक्ष्मण क्षण भर में उन...

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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-234

जय श्री राधे कृष्ण ….. "*निर्मल मन जन सो पावा, मोहि कपट छल छिद्र न भावा, भेद लेन पठवा दससीसा, तबहुँ न कछु भय हानि कपीसा ।। भावार्थ:- जो मनुष्य निर्मल मन का होता है, वही मुझे पाता है ।...

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