सुविचार
जय श्री राधे कृष्ण ….. "अब मैं कुसल मिटे भय भारे, देखि राम पद कमल तुम्हारे, तुम्ह कृपाल जा पर अनुकूला, ताहि न ब्याप त्रिबिध भव सूल ।। भावार्थ:- हे श्री राम जी! आपके चरण विंद के दर्शन कर अब...
जय श्री राधे कृष्ण ….. "अब मैं कुसल मिटे भय भारे, देखि राम पद कमल तुम्हारे, तुम्ह कृपाल जा पर अनुकूला, ताहि न ब्याप त्रिबिध भव सूल ।। भावार्थ:- हे श्री राम जी! आपके चरण विंद के दर्शन कर अब...
जय श्री राधे कृष्ण ….. "ममता तरुन तमी अँधिआरी, राग द्वेष उलूक सुखकारी, तब लगि बसति जीव मन माहीं, जब लगि प्रभु प्रताप रबि नाहीं ।। भावार्थ:- ममता पूर्ण अंधेरी रात है, जो राग -द्वेष रूपी उल्लुओं को सुख देने...
जय श्री राधे कृष्ण ….. "तब लगि हृदयँ बसत खल नाना, लोभ मोह मच्छर मद माना, जब लगि उर न बसत रघुनाथा, धरें चाप सायक कटि भाथा ।। भावार्थ:- लोभ, मोह, मत्सर (डाह), मद और मान आदि अनेकों दुष्ट तभी...
जय श्री राधे कृष्ण ….. "तब लगि कुसल न जीव कहुँ सपनेहुँ मन बिश्राम, जब लगि भजत न राम कहुँ सोक धाम तजि काम ।। भावार्थ:- तब तक जीव की कुशल नहीं और ना स्वप्न में भी उस के मन...
जय श्री राधे कृष्ण ….. "बरु भल बास नरक कर ताता, दुष्ट संग जनि देइ बिधाता, अब पद देखि कुसल रघुराया, जौं तुम्ह कीन्हि जानि जन दाया *।। भावार्थ:- हे तात! नरक में रहना वरन् अच्छा है, परंतु विधाता दुष्ट...
जय श्री राधे कृष्ण ….. "*खल मंडली बसहु दिन राती, सखा धरम निबहइ केहि भाँती, मै जानउँ तुम्हारि सब रीती, अति नय निपुन न भाव अनीती ।। भावार्थ:- दिन-रात दुष्टों की मंडली में बसते हो । (ऐसी दशा में) हे...
जय श्री राधे कृष्ण ….. "अनुज सहित मिलि ढिग बैठारी, बोले बचन भगत भयहारी, कहु लंकेस सहित परिवारा, कुसल कुठाहर बास तुम्हारा ।। भावार्थ:- छोटे भाई लक्ष्मण जी सहित गले मिल कर उन को अपने पास बैठा कर श्री राम...
जय श्री राधे कृष्ण ….. "अस कहि करत दंडवत देखा, तुरत उठे प्रभु हरष बिसेषा, दीन बचन सुनि प्रभु मन भावा, भुज बिसाल गहि हृदयँ लगावा ।। भावार्थ:- प्रभु ने उन्हें ऐसा कह कर दण्डवत करते देखा तो वे अत्यन्त...
जय श्री राधे कृष्ण ….. "श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर,त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर ।। भावार्थ:- मैं कानों से आप का सुयश सुनकर आया हूँ कि प्रभु भव (जन्म-मरण) के भय का नाश करने वाले...
जय श्री राधे कृष्ण ….. "नाथ दसानन कर मैं भ्राता, निसिचर बंस जनम सुरत्राता, सहज पापप्रिय तामस देहा, जथा उलूकहि तम पर नेहा ।। भावार्थ:- हे नाथ ! मैं दशमुख रावण का भाई हूँ । हे देवताओं के रक्षक !...