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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-266

जय श्री राधे कृष्ण ….. "प्रभु तुम्हार कुलगुर जलधि कहिहि उपाय बिचारि, बिनु प्रयास सागर तरिहि सकल भालु कपि धारि ।। भावार्थ:- हे प्रभु ! समुद्र आपके कुल में बड़े (पूर्वज) हैं, वे विचार कर उपाय बतला देंगे । तब...

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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-265

जय श्री राधे कृष्ण ….. "कह लंकेस सुनहु रघुनायक, कोटि सिंधु सोषक तव सायक, जद्यपि तदपि नीति असि गाई, बिनय करिअ सागर सन जाई ।। भावार्थ:- विभीषण जी ने कहा - हे रघुनाथ जी! सुनिये, यद्यपि आपका एक बाण ही...

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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-264

जय श्री राधे कृष्ण ….. "सुनु कपीस लंकापति बीरा, केहि बिधि तरिअ जलधि गंभीरा, संकुल मकर उरग झष जाती, अति अगाध दुस्तर सब भांती ।। भावार्थ:- हे वीर वानर राज सुग्रीव और लंकापति विभीषण ! सुनो, इस गहरे समुद्र को...

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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-263

जय श्री राधे कृष्ण ….. "पुनि सर्बग्य सर्ब उर बासी, सर्बरुप सब रहित उदासी, बोले बचन नीति प्रतिपालक, कारन मनुज दनुज कुल घालक ।। भावार्थ:- फिर सब कुछ जानने वाले, सबके हृदय में बसने वाले, सर्वरुप (सब रूपों में प्रकट),...

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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-262

जय श्री राधे कृष्ण ….. "अस प्रभु छाड़ि भजहिं जे आना, ते नर पसु बिनु पूंछ बिषाना, निज जन जानि ताहि अपनावा, प्रभु सुभाव कपि कुल मन भावा ।। भावार्थ:- ऐसे परम कृपालु प्रभु को छोड़ कर जो मनुष्य दूसरे...

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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-261

जय श्री राधे कृष्ण ….. "रावन क्रोध अनल निज स्वास समीर प्रचंड, जरत बिभीषनु राखेउ दीन्हेउ राजु अखंड ।। भावार्थ:- श्री राम जी ने रावण के क्रोध रूपी अग्नि में जो अपनी (बिभीषण की) श्वास (वचन) रूपी पवन से प्रचंड...

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बेटा

बेटा नवविवाहिता पत्नी बार-बार अपनी सास पर आरोप लगाए जा रही थी और उसका पति बार-बार उसको अपनी हद में रहकर बोलने की बात कह रहा था। पत्नी थी कि चुप होने का नाम ही नही ले रही थी। जितनी...

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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-260

जय श्री राधे कृष्ण ….. "जदपि सखा तव इच्छा नाहीं, मोर दरसु अमोघ जग माहीं, अस कहि राम तिलक तेहि सारा, सुमन बृष्टि नभ भई अपारा ।। भावार्थ:- (और कहा) हे सखा! यद्यपि तुम्हारी इच्छा नहीं है, पर जगत में...

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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-259

जय श्री राधे कृष्ण ….. "अब कृपाल निज भगति पावनी, देहु सदा सिव मन भावनी, एवमस्तु कहि प्रभु रनधीरा, मागा तुरत सिंधु कर नीरा ।। भावार्थ:- अब तो हे कृपालु! शिव जी के मन को सदैव प्रिय लगने वाली अपनी...

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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-258

जय श्री राधे कृष्ण ….. "सुनहु देव सचराचर स्वामी, प्रनतपाल उर अंतरजामी, उर कछु प्रथम बासना रही, प्रभु पद प्रीति सरित सो बही ।। भावार्थ:- (विभीषण जी ने कहा) हे देव! हे चराचर जगत के स्वामी ! हे शरणागत के...

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