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पाप बेचने वाली

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पाप बेचने वाली

एक बार घूमते-घूमते कालिदास बाजार गये | वहाँ एक महिला बैठी मिली | उसके पास एक मटका था और कुछ प्यालियाँ पड़ी थी |

कालिदास ने उस महिला से पूछा : ” क्या बेच
रही हो ?
महिला ने जवाब दिया : ” महाराज ! मैं पाप बेचती हूँ |

“ कालिदास ने आश्चर्यचकित होकर पूछा : ” पाप
और मटके में ?

“ महिला बोली : ” हाँ , महाराज ! मटके में पाप है

| “ कालिदास : ” कौन-सा पाप है ?

महिला : ” आठ पाप इस मटके में है |में चिल्लाकर कहती हूँ की मैं पाप बेचती हूँ पाप और लोग पैसे देकर पाप ले जाते है|”
अब महाकवि कालिदास को और आश्चर्य हुआ ” पैसे देकर लोग पाप ले जाते है ?

“महिला : ” हाँ , महाराज ! पैसे से खरीदकर लोग पाप ले जाते है |

कालिदास : ” इस मटके में आठ पाप कौन-कौन से है ? “

महिला : ” क्रोध ,बुद्धिनाश , यश का नाश , स्त्री एवं बच्चों के साथ अत्याचार और अन्याय ,चोरी , असत्य आदि दुराचार , पुण्य का नाश , और स्वास्थ्य का नाश … ऐसे आठ प्रकार के पाप इस घड़े में है |

कालिदास को कौतुहल हुआ की यह तो बड़ी विचित्र बात है |
किसी भी शास्त्र में नहीं आया है की मटके में आठ प्रकार के पाप
होते है |
वे बोले : ” आखिरकार इसमें क्या है ? ”

महिला : ”महाराज ! इसमें शराब है शराब !

कालिदास महिला की कुशलता पर प्रसन्न होकर बोले : ” तुझे
धन्यवाद है ! शराब में आठ प्रकार के पाप है यह तू जानती है
और ‘मैं पाप बेचती हूँ ‘ ऐसा कहकर बेचती है फिर भी लोग ले
जाते है ।

जय श्रीराम

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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