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स्वर्ग और नरक का रहस्य

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स्वर्ग और नरक का रहस्य

बहुत समय पहले की बात है। एक गांव में एक बुजुर्ग महिला रहती थीं। उन्होंने अपना पूरा जीवन प्रभु की भक्ति में समर्पित कर दिया था। प्रतिदिन सुबह और शाम वे प्रभु का ध्यान करतीं, मंदिर जातीं और सभी के साथ प्रेमपूर्वक व्यवहार करती थीं। जब उनकी मृत्यु का समय आया, तो स्वयं यमराज उनके सामने प्रकट हुए।

महिला हाथ जोड़कर बोलीं – “हे यमराज! मुझे बताइए, आप मुझे कहां लेकर जा रहे हैं? स्वर्ग या नरक?”
यमराज मुस्कुराए और बोले – “माता, आपने पूरे जीवन प्रभु की सच्चे मन से भक्ति की है। प्रभु आपसे प्रसन्न हैं और उन्होंने आपको अपने धाम बुलाया हैइसलिए न हम आपको स्वर्ग ले जाएंगे, न नरक — सीधे प्रभु के धाम ले चलेंगे।”

बुजुर्ग महिला प्रसन्न हुईं, लेकिन मन में एक जिज्ञासा उठी। वे बोलीं – “यमराज, मेरी एक छोटी-सी इच्छा है। मैंने जीवनभर सुना कि कोई मरने के बाद स्वर्ग जाता है या नरक, पर मैं स्वयं कभी देख नहीं पाई। क्या मैं जाने से पहले यह देख सकती हूं कि वे दोनों कैसे होते हैं?”

यमराज ने मुस्कुराकर कहा – “आपकी भक्ति के कारण आपकी इच्छा पूरी की जाएगी। पहले आपको नरक दिखाएंगे, फिर स्वर्ग, और अंत में प्रभु के धाम चलेंगे।”

यमराज उन्हें लेकर नरक पहुंचा। वहां का दृश्य देखकर महिला स्तब्ध रह गईं। सब ओर चीखें, दर्द, भय और अंधकार था। लोग रो रहे थे, तड़प रहे थे, पर मर नहीं पा रहे थे। चारों ओर दुख का साम्राज्य था।

बीच में एक बड़ा-सा बर्तन 100 फीट ऊंचाई पर लटका हुआ था। उसमें से मीठी खीर की सुगंध आ रही थी। नीचे लोग भूख से बेहाल थे। महिला ने किसी एक से पूछा – “बेटा, तुम लोग इतने परेशान क्यों हो? ये स्वादिष्ट खीर तो ऊपर रखी है, तुम लोग खा क्यों नहीं लेते?”

वह व्यक्ति रोते हुए बोला – “मां, वही तो हमारी पीड़ा है! बर्तन इतना ऊंचा है कि कोई पहुंच ही नहीं सकता। हमारे पास इतनी बड़ी चम्मच है, पर कोई उसका उपयोग नहीं कर पा रहा। भूख से तड़प रहे हैं, किन्तु खीर तक हाथ नहीं पहुंचता।”

महिला को उन पर दया आई, पर वह कुछ कर नहीं सकती थीं।

फिर यमराज उन्हें स्वर्ग लेकर पहुंचे। वहां हंसी-खुशी का माहौल था। लोग प्रसन्नचित्त थे, संगीत गूंज रहा था, सभी हंसते-मुस्कुराते एक-दूसरे की सेवा कर रहे थे।

महिला ने चारों ओर देखा — आश्चर्य! यहां भी वही दृश्य था। बीच में वही ऊंचा बर्तन, 100 फीट ऊपर, वही स्वादिष्ट खीर और वही बड़ी चम्मच। पर यहां कोई भूखा नहीं था, सबके चेहरे पर संतोष और प्रसन्नता थी।

महिला ने उत्सुकता से पूछा – “ये कैसे संभव है? परिस्थिति तो वही है जो नरक में थी, पर वहां लोग दुखी थे और यहां सब प्रसन्न हैं?”

एक व्यक्ति ने कहा – “माता, इस प्रश्न का उत्तर आपको हमारे वरिष्ठ से मिलेगा।”

महिला उस बुजुर्ग व्यक्ति के पास गईं। उन्होंने मुस्कुराकर कहा – “माता, फर्क सिर्फ सोच का है। वहां सब स्वार्थी थे, केवल अपने लिए खाना चाहते थे, इसलिए कोई नहीं खा सका। यहां हम सब मिलकर रहते हैं। एक के ऊपर एक चढ़कर, जैसे ‘दही-हांडी’ उत्सव में होता है, हम ऊंचाई तक पहुंचते हैं, बर्तन से खीर निकालते हैं और सबको बांट देते हैं। जो दूसरों को खिलाता है, वही तृप्त होता है। यही है स्वर्ग का रहस्य।”

बुजुर्ग महिला की आंखें भर आईं। उन्हें समझ आ गया कि प्रभु ने सभी को समान परिस्थितियां दी हैं, लेकिन जो दूसरों की मदद करता है, जो सहयोगी और प्रेममय होता है, वही स्वर्ग का सुख भोगता है। जो स्वार्थी और खुद में उलझा रहता है, वही नरक में जीता है — भले वह धरती पर ही क्यों न हो।

यमराज ने कहा – “माता, आपने जीवनभर यही सिखाया था — प्रेम, सहयोग और भक्ति। अब चलिए, प्रभु के धाम चलें।”

महिला मुस्कुराई और बोलीं – “अब मैं समझ गई हूं कि स्वर्ग और नरक हमारे कर्मों और विचारों से बनते हैं।”
यह कहकर वे शांतिपूर्वक प्रभु के धाम चली गईं।

जीवन की परिस्थितियां सबके लिए लगभग समान होती हैं, फर्क केवल दृष्टिकोण और कर्मों का होता है। यदि हम मदद करने, प्रेम बांटने और दूसरों के सुख में सुखी रहने की आदत डाल लें, तो हमारा जीवन स्वयं स्वर्ग बन जाता है। पर यदि हम केवल अपने बारे में सोचें, शिकायत करें, और सहयोग न करें — तो वही जीवन नरक बन जाता है।

सीख: परिस्थिति नहीं, हमारा दृष्टिकोण तय करता है कि हम स्वर्ग में हैं या नरक में। दूसरों का सहयोग ही असली भक्ति है। जो प्रेम और सहयोग से जीता है, वही ईश्वर के सबसे निकट होता है।

जय श्रीराम

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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