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धर्म की रक्षा के लिए कठोर बनना होगा – श्रीकृष्ण

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धर्म की रक्षा के लिए कठोर बनना होगा – श्रीकृष्ण

भीष्म चुप रहे , कुछ क्षण बाद बोले,” पुत्र युधिष्ठिर का राज्याभिषेक करा चुके केशव…? उनका ध्यान रखना , परिवार के बुजुर्गों से रिक्त हो चुके राजप्रासाद में उन्हें अब सबसे अधिक तुम्हारी ही आवश्यकता है!”
कृष्ण चुप रहे …. !
भीष्म ने पुनः कहा , “कुछ पूछूँ केशव…? बड़े अच्छे समय से आये हो …. ! सम्भवतः धरा छोड़ने के पूर्व मेरे अनेक भ्रम समाप्त हो जाँय!!”

कृष्ण बोले – कहिये न पितामह ….!

एक बात बताओ प्रभु ! तुम तो ईश्वर हो न …. ?
कृष्ण ने बीच में ही टोका , “नहीं पितामह ! मैं ईश्वर नहीं … मैं तो आपका पौत्र हूँ पितामह … ईश्वर नहीं ….”
भीष्म उस घोर पीड़ा में भी ठठा कर हँस पड़े …. बोले , ” अपने जीवन का स्वयं कभी आकलन नहीं कर पाया कृष्ण , सो नहीं जानता कि अच्छा रहा या बुरा , पर अब तो इस धरा से जा रहा हूँ कन्हैया , अब तो ठगना छोड़ दे रे ….
” कृष्ण जाने क्यों भीष्म के पास सरक आये और उनका हाथ पकड़ कर बोले …. ” कहिये पितामह …. !”

भीष्म बोले , “एक बात बताओ कन्हैया ! इस युद्ध में जो हुआ वो ठीक था क्या …. ?”
“किसकी ओर से पितामह …. ? पांडवों की ओर से… ?” ” कौरवों के कृत्यों पर चर्चा का तो अब कोई अर्थ ही नहीं कन्हैया ! पर क्या पांडवों की ओर से जो हुआ वो सही था… ? आचार्य द्रोण का वध , दुर्योधन की जंघा के नीचे प्रहार , दुःशासन की छाती का चीरा जाना , जयद्रथ और द्रोणाचार्य के साथ हुआ छल , निहत्थे कर्ण का वध , सब ठीक था क्या… ? यह सब उचित था क्या …. ?”

इसका उत्तर मैं कैसे दे सकता हूँ पितामह …. ! इसका उत्तर तो उन्हें देना चाहिए जिन्होंने यह किया ….. !!
उत्तर दें दुर्योधन, दुःशाशन का वध करने वाले भीम , उत्तर दें कर्ण और जयद्रथ का वध करने वाले अर्जुन …. !! मैं तो इस युद्ध में कहीं था ही नहीं पितामह …. !!

“अभी भी छलना नहीं छोड़ोगे कृष्ण …. ? अरे विश्व भले कहता रहे कि महाभारत को अर्जुन और भीम ने जीता है , पर मैं जानता हूँ कन्हैया कि यह तुम्हारी और केवल तुम्हारी विजय है …. ! मैं तो उत्तर तुम्ही से पूछूंगा कृष्ण …. !”

“तो सुनिए पितामह …. ! कुछ बुरा नहीं हुआ , कुछ अनैतिक नहीं हुआ …. ! वही हुआ जो हो होना चाहिए… !”

“यह तुम कह रहे हो केशव …. ? मर्यादा पुरुषोत्तम राम का अवतार कृष्ण कह रहा है ….? यह छल तो किसी युग में हमारे सनातन संस्कारों का अंग नहीं रहा, फिर यह उचित कैसे हो गया ….. ? “

“इतिहास से शिक्षा ली जाती है पितामह , पर निर्णय वर्तमान की परिस्थितियों के आधार पर लेना पड़ता है… हर युग अपने तर्कों और अपनी आवश्यकता के आधार पर अपना नायक चुनता है… !! राम त्रेता युग के नायक थे , मेरे भाग में द्वापर आया…. ! हम दोनों का निर्णय एक सा नहीं हो सकता पितामह …. !!”

” नहीं समझ पाया कृष्ण ! तनिक समझाओ तो …. !”

” राम और कृष्ण की परिस्थितियों में बहुत अंतर है पितामह.. ! राम के युग में खलनायक भी ‘ रावण ‘ जैसा शिवभक्त होता था… !! तब रावण जैसी नकारात्मक शक्ति के परिवार में भी विभीषण, मंदोदरी, माल्यावान जैसे सन्त हुआ करते थे… ! तब बाली जैसे खलनायक के परिवार में भी तारा जैसी विदुषी स्त्रियाँ और अंगद जैसे सज्जन पुत्र होते थे… ! उस युग में खलनायक भी धर्म का ज्ञान रखता था… !! इसलिए राम ने उनके साथ कहीं छल नहीं किया… ! किंतु मेरे युग के भाग में कंस , जरासन्ध , दुर्योधन , दुःशासन , शकुनी , जयद्रथ जैसे घोर पापी आये हैं …. !! उनकी समाप्ति के लिए हर छल उचित है पितामह …. ! पाप का अंत आवश्यक है पितामह , वह चाहे जिस विधि से हो… !!”

“तो क्या तुम्हारे इन निर्णयों से गलत परम्पराएं नहीं प्रारम्भ होंगी केशव …. ? क्या भविष्य तुम्हारे इन छलों का अनुसरण नहीं करेगा …. ? और यदि करेगा तो क्या यह उचित होगा…. ??”

” भविष्य तो इससे भी अधिक नकारात्मक आ रहा है पितामह …. ! कलियुग में तो इतने से भी काम नहीं चलेगा… ! वहाँ मनुष्य को कृष्ण से भी अधिक कठोर होना होगा… नहीं तो धर्म समाप्त हो जाएगा… ! जब क्रूर और अनैतिक शक्तियाँ सत्य एवं धर्म का समूल नाश करने के लिए आक्रमण कर रही हों, तो नैतिकता अर्थहीन हो जाती है पितामह… ! तब महत्वपूर्ण होती है धर्म की विजय , केवल धर्म की विजय… ! भविष्य को यह सीखना ही होगा पितामह ….. !!”

“क्या धर्म का भी नाश हो सकता है केशव …. ? और यदि धर्म का नाश होना ही है , तो क्या मनुष्य इसे रोक सकता है ….. ?”

“सब कुछ ईश्वर के भरोसे छोड़ कर बैठना मूर्खता होती है..पितामह… !

जय श्रीराम

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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