पितृदोष क्या होता है?
मोबाइल की स्क्रीन पर बेटे का नाम उभरते ही सावित्री चौंक गई। सालों बीत गए थे, बेटे ने सिर्फ औपचारिक बातें की थीं… वो भी फोन पर, जब उसके पिता अस्पताल में जिंदगी और मौत के बीच जूझ रहे थे… और उनकी अंतिम विदाई भी फोन पर ही निपटा दिया था। सावित्री जी ने कॉल उठाया—“हैलो बेटा…”
“हैलो माँ, कैसी हो?”
“मैं ठीक हूँ दीपक… तुम सुनाओ, कैसे हो?”…..“कहाँ माँ… सब कुछ ठीक कहाँ है…” उसकी आवाज में थकान थी। “क्या हुआ बेटे?”….
“माँ, ये पितृदोष क्या होता है?”
सावित्री चौंकी—“पितृदोष? तुझे लंदन में ये ख्याल कैसे आ गया? वहाँ कौन-सा पंडित मिलता है?”…..“अरे माँ, तुम भी न… हमेशा पुराने ढर्रे पर अटकी रहती हो।” दीपक की आवाज में चिड़चिड़ापन था।
सावित्री हल्की मुस्कान के साथ बोली- “हाँ बेटा, सच है… तुम जैसे छोड़कर गए थे वैसी ही हूँ । तुम्हारे जाने के बाद वही दीवारें, वही आँगन, और वही खामोशियाँ मेरी साथी हैं।”“लेकिन अचानक ये सवाल क्यों?”
“माँ, पापा के जाने के बाद से बिजनेस में लगातार घाटा हो रहा है। बच्चों की पढ़ाई का भी बुरा हाल है। मन हर वक्त परेशान रहता है। इंटरनेट पर किसी पंडित से बात की… उन्होंने कहा कि हमारे घर पर पितृदोष है। उपाय हरिद्वार में होगा और मोटी रकम माँगी है। सोचा तुमसे पूछ लूँ।”
सावित्री की आँखें भर आईं। धीरे से बोली—“बेटा, असली पितृदोष वो नहीं होता जो ज्योतिषी बताते हैं… बल्कि वो है जब पिता अपनी सारी उम्र बच्चों की ख्वाहिशें पूरी करते-करते खुद को मिटा देते हैं। ये सोचकर कि एक दिन वही बच्चे उनकी लाठी बनेंगे… उनके अकेलेपन में सहारा बनेंगे। पर जब वक्त आता है, वही बच्चे आँखें दिखाने लगते हैं… बूढ़े माँ-बाप को बीमारी में अकेला छोड़ जाते हैं… यहाँ तक कि जिन कंधों पर बैठकर उन्होंने बचपन में आसमान देखा था, उन्हीं कंधों को अंतिम यात्रा में कंधा देने तक नहीं आते। और कोई अजनबी उनके शव को श्मशान तक पहुँचा देता है।” इतना कहकर वो चुप हो गई।
फ़ोन के दोनों सिरों पर खामोशी पसर गई। “माँ… माँ…” दीपक की भर्राई आवाज आई।
सावित्री ने आँसू पोंछे और बोली—“उपाय पूछ रहा है न बेटा? इसका एक ही उपाय है—अपने बच्चों को सिर्फ सुख-सुविधाएँ ही नहीं, बल्कि समय और संस्कार भी देना। वरना कल वही भी पितृदोष का कारण पूछेंगे। याद रखना।”
सावित्री सिसक पड़ी… और दूसरी तरफ से भी रोने की आवाजें आने लगीं। शायद देर से ही सही, लेकिन उस दिन दीपक ने महसूस किया कि पिता का खोना जीवन की सबसे बड़ी हार है… और उस खालीपन की भरपाई कभी कोई नहीं कर सकता।
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जय श्रीराम
जीवित मां बाप की बुढ़ापे में सेवा कर हम पितृ ऋण से मुक्त हो सकते है और उनकी दुआएं प्राप्त कर सकते है, मरने के बाद तो सब दिखावा है।