गुरू आखिर गुरू ही होता है
एक बार आई.आई.टी. मुंबई के 4 छात्र देर तक ताश खेलते रहे और अगले दिन की परीक्षा की तैयारी नहीं कर सके। सुबह उन्हें एक युक्ति सूझी। वे खुद ग्रीस, धूल और गंदगी से सने हुए थे और डीन के पास जाकर बोले… कल रात अचानक तबीयत खराब होने के कारण वह एकमित्र अस्पताल ले गए थे। और वापस आते समय उनकी कार का टायर फट गया, हॉस्टल तक पहुंचने के लिए उन्हें पूरी रात कार को धक्का लगाना पड़ा। और वे इस हालत में परीक्षा नहीं दे सकते.।
डीन साहब को उनकी परेशानी का एहसास हुआ और उन्होंने सहानुभूति व्यक्त की और उन्हें 3 दिन का समय दिया…। 3 दिन बाद दोबारा परीक्षा में शामिल होने का विकल्प दिया गया।
छात्रों ने विकल्प को सहर्ष स्वीकार किया और डीन को धन्यवाद दिया। और परीक्षा की तैयारी शुरू कर दी। तीसरे दिन वह डीन के सामने उपस्थित हुआ। डीन ने कहा कि चूंकि यह एक विशेष स्थिति परीक्षा थी, इसलिए चारों को अलग-अलग कक्षाओं में परीक्षा के लिए बैठना पड़ा। उन्होंने पिछले 3 दिनों में अच्छी तैयारी की थी इसलिए सभी सहमत हुए।
इस परीक्षा में कुल 100 अंकों के केवल 2 प्रश्न थे।
प्र.1. कौन सा टायर फटा था? (50 अंक) टिक करें।
*(ए) फ्रंट लेफ्ट*
(बी) *सामने दाएँ*
*(सी) *रियर लेफ्ट*
*(डी) पीछे का दाहिना भाग*
प्र.2. कार में कौन कहाँ बैठा? (50 अंक) उत्तर लिखें।
(ए) ड्राइवर सीट पर: _
(बी) सामने बाएँ:
(सी) पीछे बाएँ:
(डी) पीछे दाएं: _
विशेष नोट: अंक तभी दिए जाएंगे जब चारों छात्र दोनों प्रश्नों का उत्तर समान रूप से देंगे।
आई.आई.टी बॉम्बे बैच 1992 की सच्ची कहानी।
परिणाम आप कल्पना कर सकते हैं।.
।।गुरु को कभी कम न आँकें।
।।गुरु तो गुरु ही रहेगा।।
🙏🏻
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टीचर डे की शुभकामनायें 🌹
जय श्रीराम