कृष्ण और हमारा जीवन
श्रीमद भगवत के रचियता सोलह कलाओं के स्वामी मधुसूदन ने बताया कि जीवन को कैसे जीना चाहिए वो हमें वासुदेव के जीवन से सीखना चाहिए। जहां तहां जिस भी परिस्थिति में रहे, जीवन को वही ढ़ंग से जिया। जैसा कि सर्वविदित है कि द्वापरयुग में केशव का जन्म पृथ्वी पर बढ़ते हुए कंस के पापों का अंत करने के लिए ही अवतरित हुए।
लोगो के जीवन पर तो मृत्यु का संकट होता है, किन्तु योगेश्वर के ऊपर तो मृत्यु का साया जन्म के पहले से ही आरंभ हो गया इस कारण उनके 7 बड़े भाइयों को भी कंस ने मौत का घाट उतार दिया। जन्म के उपरांत वासुदेव जी ने उनको मृत्यु के भय के कारण माता पिता से अलग, अपने गोकुल निवासी मित्र नन्द बाबा और यशोदा के आँगन में खुशियां बिखरने के लिए छोड़ आये। कान्हा के जीवन पर किसी न किसी रूप में मृत्यु के रूप में कंस भेजता रहा, वो उनसे बचते रहे।
बचपन की अठखेलियां करके बताया कि बचपन ऐसे जीना चाहिए। बचपन अच्छी शरारत भरा होना चाहिए, शरारतें, हमेशा मित्र सखाओं के साथ करनी चाहिए (पकड़े जाओ तो सभी को साझा दण्ड मिले 😃😃)।
मित्रो को एक साथ रहना सिखाते है, गाय, पेड़, लताये , रज में बल क्रीड़ा करना प्रकृति के समीप औऱ साथ रहना सिखाते है कि हमे भी हमेशा प्रकृति के समीप और साथ ही रहना चाहिए। मनसुखा के कहने पर क्रीड़ा के गेंद लाने के लिए यमुना में जाना और माँ यमुना को कालनाग के विष से मुक्त करना। अपने अच्छे कार्य के लिए किसी न किसी बहाने से करना सिखाते है।
मुरलीधर का बांसुरी बजाना, अपनी किसी भी रुचि के साथ जीना सिखाते है, की कितनी भी परेशानी उलझने क्यों ना हो किन्तु अपने मन की प्रसन्ता के लिए कुछ ना कुछ गतिविधि जरूर करनी चाहिए, वो आपको कभी भी टूटने, बिखरने नही देगी। आपको मनोबल से भर देगी। आप तरोताज़ा होकर मुश्किलों से लड़ने को तैयार होंगे।
अल्हड़पन और तरुण समय मे प्रेम राधा से किया, जब भी प्रेमी युगल के प्रेम की बात की जाती है तो हमेशा ही राधा कृष्ण का नाम लिया जाता है। हमे प्रेम करना चाहिए तो राधा कृष्ण जैसे करना चाहिये की राधा को पुकारे तो श्याम चले आये।
कंस के द्वारा मल युद्ध के आमंत्रण को स्वीकार करके, उसको उसी के घर मे जाकर मारना, उनकी निडरता दिखता है। शत्रु चाहे कितना भी बल शाली हो उसका विनाश संभव है।
कालयवन को ब्रह्मा जी से बहुत सारे वरदान प्राप्त थे कब लड़ना है, और कब युद्ध मे रहते हुए भी युद्ध मे नही रहना की रणनीति रणछोर हमे सिखाते है।
जरासन्ध जैसे कई दुष्टो ने राजा महाराजाओं को मारकर उनकी स्त्रीओ को अपनी कैद में रख लिया। उन अबला स्त्रियों की पुकार पर चिंताहरण का वहाँ जाकर उनको मुक्त करना। हमे सिखाता है कि जब भी कोई हमसे मदद की आशा रखे उनकी मदद अवश्य ही करनी चाहिए।
फ़िर अंत मे आता है 18 दिवसीय सम्भवतः विश्व का प्रथम विश्वयुद्ध, जिसमे संसार के समस्त प्राणी किसी न किसी के पक्ष में युद्ध लड़ रहे थे।
यहाँ भी रणनीतिकार की युद्ध कौशल नीति का ही परिणाम था कि 5 अकुशल, अल्हड़ बालको के छोटे के ग्रुप को विश्व की सबसे बड़ी सेना, जिसमें की विश्व के अपने समय के महान योद्धाओं से सुसज्जित सेना को हरा देना। अपने आप मे मिसाल है।
धर्म की जीत के लिए अधर्म का हारना बहुत जरूरी है, चाहे उसके लिए अपनी नीति में थोड़ा बदलाव ही क्यों ना करना पड़े। वर्ना गंगापुत्र भीष्म, गुरु द्रौणाचार्य, कुलगुरु क्रप्याचार्य, दानवीर कर्ण, अमर अश्वथामा जैसे अनगिनत योद्धाओं का हराना सम्भव ही नही होता।
कलयुग में सत्य की जीत मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्री राम के संदेशों से संभव नही है दुष्टो के साथ तो *नटवर * की नीतियों से ही *विजयश्री संभव है।
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जय श्रीराम