वाह वाह की भूख
एक बार संगत में एक भाई आने लगा वो गीत बहुत सुंदर गाता था, सारी संगत प्रसन्न हो जाती थी। एक बार संयोजन महात्मा का आगमन हुआ ,मुखी महात्मा ने कहा कि ये गीतकार महात्मा बहुत अच्छे मिले हमे नित्य संगत में आते हैं और बहुत सुंदर गीत सुनाते हैं।
संयोजक महात्मा ने कहा कि गुरु के प्रति कितने समर्पित है? मुखी बोले -नित्य संगत आ रहे है ,संगत भी प्रसन्न हे इनसे ।
संयोजक महात्मा ने कहा कि एक काम करो -एक महीने तक इनका नाम गीत के लिए नहीं बोलना फिर पता चल जाएगा कि कितने पक्के महात्मा हे।
अगली संगत में स्टेज सेकेट्री ने नाम नहीं बोला । वो महात्मा असहज हो गया कि मुझे केसे भूल गए। फिर अगली संगत में नाम नहीं आया तो सेकेट्री से बोले कि भाईसाहब आप बार बार मेरा नाम भूल रहे हो अब गलती मत करना।ये बात कुछ नाराज होकर कही । तीसरी बार सेकेट्री ने फिर नाम नहीं लिया । अब तो महात्मा का धेर्य जवाब दे गया और सेकेट्री को दो चार स्लोक़ सुनाकर चला गया। फिर संगत नहीं आया।
अगली बार संयोजक महात्मा फिर आए तो उन्होंने पूंछा कि आपका वो प्यारा गीतकार महात्मा कहां गया। मुखी बोले हुजूर वो तो चला गया नाराज होकर । संयोजक महात्मा ने कहा कि उसे बिगाड़ने में तुम लोगो का ही हाथ था। मुखी बोले हुजूर हमने तो उसे कुछ भी नहीं कहा।
संयोजक महात्मा ने कहा कि-जब वो पेहली बार संगत में आया तो उसे आपको सेवा से जोड़ना चाहिए था लेकिन आपने तो उसे वाह वाह से जोड़ दिया। जब उसे वाह वाह नहीं मिली तो आप को छोड़कर चला गया।
असल में वो अपनी वाह वाह की भूख मिटाने आया था ,आत्मा की भूख मिटाने नहीं आया था। उसे ज्ञान से कोई सरोकार नहीं था उसे बस तारीफ सुनने की भूख थी ।
इसलिए संतो ये वाह वाह की भूख बहुत खराब होती हैं ।इससे बचना चाहिए।🙏🙏🌹🌹
धन निरंकार जी 🙇🙇
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जय श्रीराम
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the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा
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