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ईश्वर का हस्ताक्षर (Signature)

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ईश्वर का हस्ताक्षर (Signature)

यदि ईश्वर ने सब कुछ बनाया, तो उसने अपने हस्ताक्षर (Signature) क्यों नहीं छोड़े, उन्होंने अपना नाम कहीं पर भी क्यों नहीं लिखा?…..

सृष्टि की अनंतता के बारे में अक्सर एक सवाल मन में आता है — यदि ईश्वर ने इस संसार को बनाया है, तो उसने अपने होने का प्रमाण क्यों नहीं छोड़ा? क्यों हम खोजते रहते हैं उन निशानों को जो हमें यकीन दिला सकें कि हमारे अस्तित्व का रचयिता कौन है? परंतु, क्या वास्तव में ईश्वर ने कोई हस्ताक्षर नहीं छोड़ा या फिर हम ही उसे देख नहीं पा रहे हैं?

सृष्टि ही है ईश्वर का हस्ताक्षर (Signature):-जब हम किसी भव्य चित्रकला को देखते हैं, तो उसके हर रंग, हर रेखा में कलाकार की छवि झलकती है। उसी प्रकार यह पूरी सृष्टि ईश्वर का हस्ताक्षर है। सूरज की पहली किरण में जो ऊष्मा है, चिड़ियों की चहचहाहट में जो संगीत है, और एक नवजात शिशु की पहली मुस्कान में जो मासूमियत है — ये सभी ईश्वर की उपस्थिति के प्रमाण हैं। हमें किसी विशेष हस्ताक्षर की आवश्यकता नहीं, क्योंकि यह सारा ब्रह्मांड ही ईश्वर की लिखावट है।

क्यों नहीं दिखता ईश्वर का स्पष्ट हस्ताक्षर?..

ईश्वर की पहचान भावना और अनुभव में है, तर्क और प्रमाण में नहीं। क्या हवा को देखा जा सकता है? नहीं। परंतु हम उसके स्पर्श को महसूस कर सकते हैं। क्या प्रेम को कभी कागज़ पर लिखा जा सकता है? नहीं। परंतु दिल से दिल तक उसका प्रवाह होता है। इसी प्रकार ईश्वर को देखने की नहीं, अनुभव करने की आवश्यकता है।

जब हम किसी जरूरतमंद की मदद करते हैं, जब हम बिना शर्त प्रेम करते हैं, तब हम ईश्वर के हस्ताक्षर को उनके आशीर्वाद के रूप में महसूस करते हैं। वे हर उस क्षण में मौजूद रहते हैं जब हम अपने अहंकार से ऊपर उठकर किसी और के लिए कुछ अच्छा करते हैं।

क्या ईश्वर के Signature की आवश्यकता है?

कल्पना कीजिए, यदि ईश्वर ने हर जगह स्पष्ट रूप से अपने Signature छोड़ दिए होते, तो क्या हमारी भक्ति में वही गहराई होती? क्या हम उसी लगन से ईश्वर को खोजते? ईश्वर का हस्ताक्षर न दिखना ही हमारी भक्ति की परीक्षा है। यह हमें अंदर झांकने को मजबूर करता है। यही कारण है कि संत तुलसीदास ने कहा है, “जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी।”

मानवता में है ईश्वर का अस्तित्व:-

भगवद् गीता में भगवान कृष्ण ने कहा है, “मैं प्रत्येक प्राणी में विद्यमान हूं।” इसका अर्थ है कि हम जितना दूसरों में प्रेम, करुणा और दया देखेंगे, उतना ही हम ईश्वर को देख पाएंगे। हमारे रिश्तों में, हमारे विचारों में और हमारी करुणा में ईश्वर का अस्तित्व झलकता है।

निष्कर्ष:- सत्य यह है कि ईश्वर ने अपने Signature हर जगह छोड़े हैं, बस देखने के लिए श्रद्धा की दृष्टि चाहिए। सृष्टि की हर सांस में, हर कण में ईश्वर का होना ही उनकी सबसे बड़ी उपस्थिति है। यह लेख सिर्फ एक तर्क नहीं, बल्कि एक आह्वान है कि हम आंखें बंद करके नहीं, बल्कि दिल खोलकर देखें। जब हम ऐसा करेंगे, तब हमें एहसास होगा कि ईश्वर का हस्ताक्षर तो हमारे आसपास ही है — हर ओर, हर क्षण।

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जय श्रीराम

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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