सहस्त्रबाहु अर्जुन ने रावण को बंदी बनाया
रावण अपनी शक्ति और विजय यात्राओं के कारण सभी लोकों में चर्चित हो चुका था। दूसरी ओर, सहस्त्रबाहु अर्जुन, जिन्हें कार्तवीर्य अर्जुन भी कहा जाता है, अपनी 1000 भुजाओं और अद्वितीय पराक्रम के कारण विश्व के सबसे शक्तिशाली राजाओं में गिने जाते थे। यह कथा इन दोनों महायोद्धाओं के बीच हुए भयंकर युद्ध का वर्णन करती है, जो शक्ति, साहस और अहंकार का अद्भुत मिश्रण है।
रावण, लंकापति और दशानन, अपनी शक्ति का प्रदर्शन करने के लिए पृथ्वी, स्वर्ग और पाताल तक अपनी विजय यात्रा पर निकला। उसने देवताओं को पराजित कर दिया, ऋषि-मुनियों को डराकर उनकी तपस्थली छीन ली, और अपनी सत्ता का झंडा हर जगह गाड़ दिया। अब उसकी दृष्टि नर्मदा नदी के तट पर स्थित महिष्मती नगरी पर थी, जो सहस्त्रबाहु अर्जुन की राजधानी थी।
रावण ने सुना था कि सहस्त्रबाहु अर्जुन को कोई भी पराजित नहीं कर सका है। अपने अहंकार में चूर रावण ने ठान लिया कि वह सहस्त्रबाहु को हराकर अपनी विजय यात्रा को और भी गौरवशाली बनाएगा।
उधर सहस्त्रबाहु अर्जुन अपने परिवार और मित्रों के साथ नर्मदा नदी के तट पर उत्सव मना रहे थे। वह अपनी सहस्त्र भुजाओं का प्रदर्शन करते हुए नर्मदा के पानी को अपने हाथों से रोक रहे थे। यह दृश्य अद्भुत और रोमांचक था। नर्मदा नदी का प्रवाह थम गया, और चारों ओर पानी का बांध बन गया।
इसी बीच रावण नर्मदा नदी के किनारे अपने सैनिकों और रथों के साथ रुका हुआ था। वह भगवान शिव की पूजा और यज्ञ कर रहा था। सहस्त्रबाहु के पानी रोकने से नदी का बहाव बदल गया, और सारा पानी रावण के शिवलिंग और यज्ञ सामग्री को बहाकर ले गया।
रावण का क्रोध अब भड़क उठा। उसने सोचा, “यह कौन मूर्ख है जो मेरी पूजा में विघ्न डालने की हिम्मत कर रहा है?” उसने अपनी सेना के साथ सहस्त्रबाहु को चुनौती देने का निर्णय लिया।
रावण ने महिष्मती नगरी पहुंचकर सहस्त्रबाहु को चुनौती दी। सहस्त्रबाहु, जो स्वभाव से शांत और धैर्यवान थे, ने रावण की चुनौती को स्वीकार कर लिया।
सहस्त्रबाहु ने कहा,”रावण, तुम्हारा अहंकार तुम्हें विनाश की ओर ले जा रहा है। तुम अपनी शक्ति पर गर्व करते हो, लेकिन यह भूल जाते हो कि हर शक्ति से बड़ी एक और शक्ति होती है।”
रावण ने हंसते हुए उत्तर दिया,”सहस्त्रबाहु, मैं दशानन हूं, लंकापति! देवता और असुर भी मेरे सामने झुकते हैं। आज तुम देखोगे कि रावण से टकराने का अंजाम क्या होता है।”
दोनों महान योद्धा अपनी-अपनी सेना के साथ युद्धभूमि में उतरे। रावण अपनी तलवार चंद्रहास और महाशक्ति से लैस था, जबकि सहस्त्रबाहु अपने 1000 हाथों से अनेक शस्त्र चला रहे थे।
युद्ध के दौरान सहस्त्रबाहु ने अपनी सहस्त्र भुजाओं से एक बार में ही रावण की सेना को तितर-बितर कर दिया। उनके बाणों की वर्षा इतनी घनी थी कि रावण की सेना भागने लगी। सहस्त्रबाहु ने अपनी गदा से रावण के रथ को टुकड़े-टुकड़े कर दिया और उसे जमीन पर गिरा दिया।
रावण क्रोधित होकर स्वयं युद्धभूमि में उतरा। उसने अपने दिव्य अस्त्रों का प्रयोग किया, लेकिन सहस्त्रबाहु की शक्ति के आगे वे सभी निष्फल हो गए। सहस्त्रबाहु ने रावण को अपनी भुजाओं से उठाकर इस प्रकार जकड़ लिया कि वह हिल भी नहीं सका।
सहस्त्रबाहु ने रावण को बंदी बनाकर अपने दरबार में कैद कर लिया। लंकापति दशानन, जिसने कभी स्वर्ग तक जीत लिया था, अब सहस्त्रबाहु की कैद में था।
जब यह समाचार रावण के पितामह पुलस्त्य ऋषि को मिला, तो वे तुरंत सहस्त्रबाहु के दरबार में पहुंचे। पुलस्त्य ऋषि ने सहस्त्रबाहु से कहा,
“महाबली सहस्त्रबाहु, रावण मेरी संतति है। मैं आपसे निवेदन करता हूं कि इसे क्षमा कर दें। यह युवा है और इसके अहंकार ने इसे अंधा कर दिया है। कृपया इसे मुक्त कर दें।”
सहस्त्रबाहु, जो धर्म और मर्यादा का पालन करने वाले राजा थे, ने पुलस्त्य ऋषि के सम्मान में रावण को मुक्त कर दिया। उन्होंने रावण से कहा, “युवक, अपनी शक्ति पर गर्व करना अच्छी बात है, लेकिन अहंकार तुम्हारा विनाश करेगा। जाओ और यह मत भूलना कि हर ताकतवर व्यक्ति से भी ताकतवर कोई न कोई होता है।”
रावण सहस्त्रबाहु के इस पराक्रम और उनकी क्षमा से बहुत प्रभावित हुआ। उसने समझ लिया कि अहंकार विनाश का कारण बनता है।
इस कथा से हमें यह सिखने को मिलता है: अहंकार का अंत निश्चित है। शक्ति का उपयोग सदैव धर्म और सत्य के लिए होना चाहिए। सहनशीलता और क्षमा सबसे बड़े गुण हैं।
यह रोमांचक कथा सहस्त्रबाहु अर्जुन की महानता और रावण के अहंकार के अंत का अद्भुत उदाहरण है।
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जय श्रीराम
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सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा
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