lalittripathi@rediffmail.com
Stories

वशिष्ठ और विश्वामित्र के बीच के संघर्ष का अंत कैसे हुआ..?

72Views

वशिष्ठ और विश्वामित्र के बीच के संघर्ष का अंत कैसे हुआ..?

जिन वशिष्ठ के साथ विश्वामित्र का भयानक संघर्ष हुआ, वे शक्ति वसिष्ठ थे। महर्षि वसिष्ठ क्षमा की प्रतिपूर्ति थे। एक बार श्री विश्वामित्र उनके अतिथि हुए। महर्षि वसिष्ठ ने कामधेनु के सहयोग से उनका राजोचित सत्कार किया। कामधेनु की अलौकिक क्षमता को देखकर विश्वामित्र के मन में लोभ उत्पन्न हो गया।

उन्होंने इस गौ को वसिष्ठ से लेने की इच्छा प्रकट की। कामधेनु वसिष्ठ जी के लिये आवश्यक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु महत्त्वपूर्ण साधन थी, अत: इन्होंने उसे देने में असमर्थता व्यक्त की। विश्वामित्र ने कामधेनु को बलपूर्वक ले जाना चाहा। वसिष्ठ जी के संकेत पर कामधेनु ने अपार सेना की सृष्टि कर दी। विश्वामित्र को अपनी सेना के साथ भाग जाने पर विवश होना पड़ा।

द्वेष-भावना से प्रेरित होकर विश्वामित्र ने भगवान शंकर की तपस्या की और उनसे दिव्यास्त्र प्राप्त करके उन्होंने महर्षि वसिष्ठ पर पुन: आक्रमण कर दिया, किन्तु महर्षि वसिष्ठ के ब्रह्मदण्ड के सामने उनके सारे दिव्यास्त्र विफल हो गये और उन्हें क्षत्रिय बल को धिक्कार कर ब्राह्मणत्व लाभी के लिये तपस्या हेतु वन जाना पड़ा। विश्वामित्र की अपूर्व तपस्या से सभी लोग चमत्कृत हो गये। सब लोगों ने उन्हें ब्रह्मर्षि मान लिया, किन्तु महर्षि वसिष्ठ के ब्रह्मर्षि कहे बिना वे ब्रह्मर्षि नहीं कहला सकते थे।

वसिष्ठ विश्वामित्र के बीच के संघर्ष की कथाएं सुविदित हैं। वसिष्ठ क्षत्रिय राजा विश्वामित्र को ‘राजर्षि’ कह कर सम्बोधित करते थे। विश्वामित्र की इच्छा थी कि वसिष्ठ उन्हें ‘महर्षि’ कहकर सम्बोधित करें। एक बार रात में छिप कर विश्वामित्र वसिष्ठ को मारने के लिए आये।

एकांत में वसिष्ठ और अरुंधती के बीच हो रही बात उन्होंने सुनी। वसिष्ठ कह रहे थे, अहा, ऐसा पूर्णिमा के चन्द्रमासमान निर्मल तप तो कठोर तपस्वी विश्वामित्र के अतिरिक्त भला किस का हो सकता है? उनके जैसा इस समय दूसरा कोई तपस्वी नहीं।

एकांत में शत्रु की प्रशंसा करने वाले महापुरुष के प्रति द्वेष रखने के कारण विश्वामित्र को पश्चाताप हुआ। शस्त्र हाथ से फेंक कर वे वसिष्ठ के चरणों में गिर पड़े। वसिष्ठ ने विश्वामित्र को हृदय से लगा कर महर्षिकहकर उनका स्वागत किया। इस प्रकार दोनों के बीच शत्रुता का अंत हुआ।

कहानी अच्छी लगे तो Like और Comment जरुर करें। यदि पोस्ट पसन्द आये तो Follow & Share अवश्य करें ।

जय श्रीराम

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

Leave a Reply