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माँ का साथ

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माँ का साथ

एक गरीब महिला अपने छोटे से बच्चे के साथ कहीं जा रही थी। रास्ते में एक बड़ा मेला लगा हुआ था। मेले की चकाचौंध देखकर बच्चे की आँखें चमक उठीं। वह अपनी माँ से ज़िद करने लगा, “माँ, मुझे मेला देखना है।”

माँ ने प्यार से समझाया, “बेटा, अभी नहीं। मेरे पास पैसे नहीं हैं। फिर कभी आएंगे।” लेकिन बच्चा अपनी ज़िद पर अड़ा रहा। मजबूर होकर माँ उसे मेले में ले गई।

मेले में जाकर बच्चा हर चीज़ के लिए मचलने लगा। “माँ, मुझे वह खिलौना चाहिए। माँ, मुझे टॉफी खाना है,  जूस पीना है। माँ, मौत का कुआँ देखना है। माँ, मिठाई खानी है।” लेकिन हर बार माँ उसे मायूस होकर मना कर देती, क्योंकि उसके पास पैसे नहीं थे।

चलते-चलते बच्चे की नज़र एक बड़े झूले पर पड़ी। झूले को देखकर वह इतना खो गया कि उसका हाथ माँ के हाथ से छूट गया। माँ की उंगली छूटते ही बच्चा घबरा गया और ज़ोर-ज़ोर से रोने लगा, ” मां मां मां…..

माँ, किधर हो? माँ, तुम कहाँ चली गई?”…..

लोगों ने बच्चे को रोते हुए देखा और उसे चुप कराने की कोशिश की। किसी ने कहा, “बेटा, झूला झूल लो।” किसी ने मिठाई दी। किसी ने खिलौना दिया। लेकिन बच्चा हर बार यही कहता, “मुझे कुछ नहीं चाहिए। मुझे मेरी माँ चाहिए।”

लेकिन यह क्या ?:- वही बच्चा कुछ देर पहले जो चीजें माँ से माँग रहा था, जिद्द कर रहा था, उनके लिये रो रहा था वे तो अब फ्री में मिल रही थीं,  लेकिन अब वह उन्हें लेने को तैयार ही नहीं था। उसे तो अब केवल मां ही चाहिये थी। उसे इन चीजों की अब कोई चाहत नहीं थी। अब तो उसकी दुनिया में सबसे कीमती चीज उसकी माँ थी।

सीख: माँ का साथ दुनिया की सबसे बड़ी दौलत है। कोई भी भौतिक चीज़ माँ की जगह नहीं ले सकती। अगर आपके पास माँ का साया है, तो आप सच में सबसे अमीर हैं। माँ की अहमियत को समझें और उनका सम्मान करें।

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जय श्रीराम

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

1 Comment

  • मेरी मां मेरे साथ नहीं है परन्तु परमात्मा रूपी मां मेरे साथ हैं

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