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पिता की वैल्यू

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पिता की वैल्यू

45 वर्षीय दीवान की नौकरी छुट गई थी, बॉस ने जलील करके ऑफिस से निकाल दिया था। पिछले बारह महीनों में तीसरी बार उसे नौकरी से निकाला गया था रात हो चुकी थी। वह बाजार मे पेड़ के नीचे रखी एक बेंच पर बैठा था।

घर जाने का उसका जरा भी मन नही था। बेंच पर बैठा वह अपने दोस्तों को बार बार फोन मिला रहा था। उनसे रिक्वेस्ट कर रहा था कि कही जगह खाली हो तो बता दे उसे तुरंत नौकरी की जरूरत है।

दीवान कामचोर नही था। मगर बढ़ते कम्प्युटर के इस्तेमाल ने उसे कमजोर बना दिया था। हालांकि उसने कम्प्युटर चलाना भी सीख लिया था मगर नये लड़कों जितना कम्प्युटर उसे नही चलाना आता था। इस कारण उससे गलतियाँ हो जाती थी।

रात के दस बजे वह हताश और निराश सा घर पहुंचा। अंदर प्रवेश करते ही बीवी चिल्लाई “कहाँ थे इतनी रात तक? किस औरत के साथ गुलछर्रे उड़ा रहे थे? तुमको शर्म भी नही आती क्या? घर मे जवान बेटा और बेटी बैठे हैं। उनकी शादी की उम्र निकलती जा रही है। कब होश आयेगा तुम्हे? अगर इनकी जिम्मेदारी नही निभानी थी तो पैदा ही क्यों किया था? “

दीवान कुछ भी नही बोला। पत्नी की रोज रोज की चिक चिक का उसने जवाब देना छोड़ दिया था। अभी वह बाहर रखी टंकी से लगे नल से हाथ मुँह धो रहा था कि बेटी दौड़ते उसके पास आई आते ही बोली ” पापा आप मेरे लिए मोबाइल लाए क्या? दीवान ने बेटी को भी कोई जवाब नही दिया। “

बेटी फिर से बोली ” पापा आप जवाब क्यों नही देते ? सुबह तो आप पक्का प्रोमिस करके गए थे कि रात को लौटते समय मेरे लिए मोबाइल लेकर ही आएंगे।” दीवान चुप ही रहा।

वह जवाब देता तो क्या देता? बेटी के मोबाइल के लिए एडवांस मांगने पर ही बॉस ने उसे नौकरी से निकाल दिया था।

बेटी अपने हाथ मे पकड़े पुराने फोन को दिखाते हुए बोली “आपको क्या लगता है पापा? मै झूठ बोल रही हूँ?

देखो ये मोबाइल सचमुच खराब हो गया है। ऑन करते ही हैंग हो जाता है। “

दीवान चुप था। वह अपनी नौकरी जाने की खबर भी किसी को नही बताना चाहता था। क्योंकि वह जानता था अगर ये बात बताई तो बेटा, बेटी और पत्नी सभी उसके पीछे पड़ जाएंगे। उसे कोसने लगेंगें कि वह ढंग से काम नही करता । इसीलिए हर चौथे महीने नौकरी से निकाल दिया जाता है।

हाथ मुँह धोने के बाद वह सीधा अपने कमरे मे गया। जहाँ बैड पर पसरी पत्नी मोबाइल चला रही थी। जिसकी आँखे मोबाइल स्क्रीन पर थी और कान घर मे हो रही बातों को सुन रहे थे। ज्यों ही दीवान ने कमरे मे कदम रखा वह चिल्लाई “जवाब क्यों नही देते?……बहरे हो गए क्या?…..बेटी को मोबाइल क्यों नही लाकर दिया? “

वह दबी दबी आवाज मे बोला ” पैसे हाथ मे नही आये। जब पैसे मिलेंगे तब ला दूंगा? पत्नी बोली ” हाथ मे नही थे तो किसी से उधार ले लेते? तुम जानते हो ना वह कम्पिटिशन की तैयारी कर रही है। बिना मोबाइल के कैसे पढेगी? ” “

दीवान के पास जवाब देने को बहुत कुछ था। मगर अब उसने चुप रहना सीख लिया था।  वह रसोई मे चला आया। खुद ही थाली निकाली। फिर खाना खाने लगा। दिवान की बेटी 22 साल की हो चुकी थी। बेटा 24 साल का हो चुका था। दोनों पढाई मे कम और सोशल मीडिया पर ज्यादा समय बिताते थे। इस कारण कम्पिटिशन मे निकलने का सवाल ही पैदा नही होता था। अभी दीवान ने खाना खत्म नही किया था कि उसका बेटा घर से बाहर से गाना गुनगुनाता हुआ सीधा रसोई मे आया। मगर दीवान को वहाँ खाना खाते देखकर अपने कमरे मे चला गया।

दीवान ने नोटिस किया कि उसके कदम बहक रहे थे। जरूर यार दोस्तों के साथ बैठ कर पीकर आया था। शुरू शुरू मे जब बेटा पीकर घर आता था। तब दीवान उसे बहुत डांटा करता था। मगर एक दिन बेटा सामने बोल गया। दीवान को ज्यादा गुस्सा आ गया था। इस कारण उसने बेटे को थप्पड़ लगाना चाहा। तब बेटे ने उसका हाथ पकड़ लिया था और गुस्से मे उसे आँख दिखाने लगा था। उस दिन के बाद दीवान ने बेटे से कुछ भी कहना छोड़ दिया था।

वह खाना खाकर वापस कमरे मे आया तब पत्नी की किच पिच फिर से शुरू हो गई थी। मगर वह चुपचाप सो गया। सुबह जलदी उठकर वह काम की तलाश मे निकल गया। वह जानता था बिना काम किये सबकुछ बिखर जाएगा। घर खर्च चलाना था। बच्चों की पढाई की जरूरते पूरी करनी थी। उनकी शादी भी करनी थी।

शाम तक वह भूखा प्यासा दफ्तरों के चक्कर लगाता रहा।खाना नही खाने से शरीर की शुगर लो हो गई थी। शरीर मे सुन्न सी आई हुई थी। वह सोचते हुए चल रहा था। पता नही कब चलते चलते वह फुटपाथ से मुख्य सड़क पर आ गया।

तेज दौड़ता हुआ ट्रोला उसके ऊपर से निकल गया। दीवान को तड़पने का मौका भी नही मिला। सड़क पर ही उसके प्राण पखेरू उड़ गए। दीवान के बेटे- बेटी और पत्नी ने रोते बिलखते हुए उसका अंतिम संस्कार किया।

उसके जाने के बाद घर का माहौल पूरी तरह बदल गया था। जिन लोगों से उधार पैसे ले रखे थे वे रोज घर का चक्कर लगाने लगे थे। रिश्तेदारों ने फोन उठाने बन्द कर दिये थे। घर का वाईफाई का कनेक्शन कट चुका था। अचानक से घर मे नेट चलना बंद हो गया था। बेटी और बेटा अब खाने मे कमी नही निकालते थे। जो भी मिल जाता खाकर पानी पी लेते थे।

बेटे की आजादी खत्म हो गई थी। अब वह एक कपड़े की दुकान मे 7 हजार रुपये महीने की नौकरी करने लगा था। बेटी भी एक प्राइवेट स्कूल मे 5000 हजार रुपये महीने की नौकरी करने लगी।

पत्नी के लिए सबकुछ बदल चुका था। माथे का सिंदूर मिटते ही उससे सजने संवरने का अधिकार छीन लिया गया था। अब वह घंटो शीशे के सामने खड़ी नही होती थी। पति को देखते ही किच किच शुरू कर दिया करती थी। अब उसकी आवाज सुनने को तरस गई थी। पति जब जिंदा था वह निश्चिंत होकर सोया करती थी।

मगर उसके गुजरने के बाद एक छोटी सी आवाज भी उसे डरा देती थी। रात भर नींद के लिए तरसती रहती थी। उसके गुजरने के बाद पूरे परिवार को पता चल गया था कि वो उनके लिए बहुत कुछ था। वो सुख चैन था। वो नींद था। वो रोटी था, कपड़ा था, मकान था। वो पूरा बाजार था। वो ख्वाहिशों का आधार था मगर उसकी वैल्यू उसके जीते जी उन्हे पता नही थी। बाप की कदर किया करो।

अगर वो गुजर गया तो अंधेरा छा जाएगा।

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जय श्रीराम

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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