अतृप्त मन
असंतोषी मन इस संसार का सबसे दुःखी मन है। जिस मन में संतोष नहीं वह बहुत कुछ प्राप्ति के बावजूद भी अतृप्त ही रहेगा। धन के बल पर भोग अवश्य प्राप्त हो जाते हैं मगर तृप्ति की प्राप्ति नहीं हो सकती है। धन के बल पर पूरे संसार के भोगों को प्राप्त करने के बाद भी तुम अतृप्त ही रहोगे। रिक्तता , खिन्नता, विषाद, अशांति तुम्हारा पीछा नही छोड़ेगी। असंतोष के कारण ही मानव पाप और निम्न आचरण करता है।
जगत के सारे पदार्थ मिलकर भी मानव को सन्तुष्ट नहीं कर सकते हैं। एक मात्र संतोष ही मानव मन को प्रसन्न रख सकता है। प्रभु पर विश्वास हो तो अभाव में भी कृपा का और प्रत्येक क्षण आनन्द का अनुभव होगा। विषय के लिए नहीं वसुदेव के लिए जियो। धन जीवन की आवश्यकता है, उद्देश्य कदापि नहीं। विषय भोग से आज तक कोई तृप्त नहीं हो पाया। प्रभु चरणों के आश्रय से ही जीवन में तृप्ति का अनुभव किया जा सकता है।
जय श्रीराम