सेवा भी आराधना है
अपेक्षारहित अथवा निस्वार्थ सेवा भी ईश्वर की आराधना का एक रूप है। यदि जीवन में सेवा का सौभाग्य मिलता हो तो सेवा सभी की करना लेकिन आशा किसी से भी न रखना क्योंकि सेवा का वास्तविक मूल्य भगवान दे सकते हैं इंसान नहीं। जगत से अपेक्षा रखकर कोई सेवा की गई है तो वो एक न एक दिन निराशा का कारण अवश्य बनेगी।
श्रेष्ठ तो यही है कि अपेक्षा रहित होकर सभी की सेवा की जाए। यदि सेवा का मूल्य ये दुनिया अदा कर दे, तो समझ जाना वो सेवा नहीं हो सकती। सेवा कोई वस्तु नहीं है जिसे खरीदा-बेचा जा सके। सेवा पुण्य कमाने का साधन है, प्रसिद्धि कमाने का नहीं। दुनिया की नजरों में सम्मानित होना बड़ी बात नहीं, गोविन्द की नजरों में सम्मानित होना बड़ी बात है।
ॐ नमो नारायण जय श्री हरि सदा सहाय 🙏🏻🌹
जय श्रीराम