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यज्ञ धर्म ही है

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यज्ञ धर्म ही है

जब जामवंत लंका पहुंचे तो रावण किले के द्वार पर चरण छूने आया और बोला, पितामह मैं आपको प्रणाम करता हूं आप कैसे आए?????……

जामवंत ने कहा,” मैं एक इच्छा लेकर तुम्हारे पास आया हूं मेरे साथ दो जजमान है वह एक यज्ञ करना चाहते हैं युद्ध शुरू करने के लिए। उन्हें एक ऐसे पंडित की आवश्यकता है जो शेव भी हो और वैष्णव भी। और तुमसे ज्यादा ज्ञानी तो इस पूरे ब्रह्मांड में कोई नहीं है। क्या तुम उनका पुरोहित बनोगे ?…

रावण ने कहा, ” जहां तक मुझे सूचना है आपके दोनों जजमान अयोध्या के निर्वासित राजकुमार राम और लक्ष्मण तो नहीं है।”

   जामवंत ने कहा, “हां दशानन वही है क्या आप स्वीकार करेंगे” ???  रावण बोला, ” क्या उनके यज्ञ का उद्देश्य लंका विजय है.” जामवंत ने कहा, ” हां उनका यही उद्देश्य है क्या आप स्वीकार करेंगे।”

रावण ने कहा, ” मैं तो जिज्ञासा के लिए पूछ रहा था अन्यथा द्वार पर आकर किसी पंडित से कोई यज्ञ के लिए कहे तो अस्वीकार करना उसका धर्म ही नहीं है

मैं कल आपके साथ चलूंगा और उनका यज्ञ कराऊंगा…

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जय श्रीराम

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
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