कर्मों की खेती
कर्मों की खेती में जाने-अनजाने जो बीज शुभ के अथवा अशुभ के आपके द्वारा पड़ जाते हैं देर-सबेर उनका अंकुरण निश्चित होना है। प्रकृति के अपने सिद्धांत हैं वो अपने नियमों पर सदैव अटल रहती है।
यदि आप पौधों को पानी देते हैं तो वह स्वत: हरा भरा रहेगा और यदि आपने उसकी उपेक्षा की तो उसे मुरझाने में भी वक्त नहीं लगने वाला है।
निश्चित ही स्वर्ग और नरक दोनों यहीं हैं। जिन लोगों ने शुभकर्म दान धर्म सेवा पुण्य किए उनके लिए ये दुनिया स्वर्ग बन गई तो जिन लोगों ने बुरे कर्म अत्याचार दुराचार किए उनको यहीं नरक का आभास होने लगा।
इस दुनिया में केवल चाहने मात्र से कुछ भी प्राप्त नहीं हो जाता है। यहाँ जो भी और जितना भी आपको प्राप्त होता है, वह निश्चित ही आपके परिश्रम और आपके सद्कर्मों का पुरस्कार होता है।
कर्म के जो बीज इस प्रकृति में बोए जाएंगे समय आने पर उसकी फसल भी अवश्य काटनी ही पड़ेगी। फूलों की खेती करने वाले को ये प्रकृति खुशबू एवं सौंदर्य स्वतः प्रदान कर देती है।
जय श्रीराम