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मैं ही गरीब क्‍यों ?

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मैं ही गरीब क्‍यों ?

आजकल के दौर में अधिकतर लोग अपने जीवन से असंतुष्ट हैं। उन्हें लगता है कि मैं ही गरीब क्यों। मैं ही दूसरों से कमजोर क्यों हूँ? उन्हें अपने आप में दूसरों के मुकाबले कमी लगती है वे इसका दोष भगवान को देते हैं उन्हें अपनी स्थिति का कारण ठहराते हैं।

  बहुत समय पहले की बात है एक गाँव में धर्म उपदेश देने के लिए लगे हुए शिविर में भगवान गौतम बुद्ध पहुँचे। गाँव के लोग अपनी-अपनी समस्याएं लेकर उनके पास जाते और उनसे समाधान प्राप्त कर नई ऊर्जा के साथ वापस लौटते।

गाँव के बाहर एक गरीब राह में बैठा, बुद्ध के पास आते-जाते लोगों को निहारता रहता, उसने क्या देखा? “दुखी चेहरा लिए भारी क़दमों से लोग भगवान गौतम बुद्ध के शिविर में जाते और नई ऊर्जा के साथ चेहरे पर खुशी व आंनद लिए वापस लौटते।”

गरीब ने सोचा क्‍यों न मैं भी भगवान के पास अपनी समस्या लेकर जांऊ? यह सोचकर हिम्मत करके वह भी शिविर की ओर चल देता है, शिविर में एक-एक कर क्रमबद्ध तरीके से व्यक्ति को प्रवेश मिलता है, इसलिए वह भी अपनी बारी की प्रतीक्षा करने लगा। जो कुछ उसने रास्ते में देखा, अब यहाँ उसे साक्षात्‌ देखने को मिल रहा है। लोग एक-एक कर अपनी समस्याएँ बता रहे थे, भगवान गौतम बुद्ध चुपचाप शांति से सब की समस्या सुनते और जवाब देते।

उसकी भी बारी आई उसने भगवान गौतम बुद्ध को प्रणाम किया और बोला- “भगवन्‌ मैं ही गरीब क्यों?” भगवान गौतम बुद्ध मुस्कुराए और बोले- “तुमने कभी किसी को दिया ही नहीं इसलिए गरीब हो।” इस पर वह आश्चर्य से वह भगवान गौतम बुद्ध का मुँह ताकने लगा और बोला “भगवन्‌ मेरे पास कुछ देने के लिए है ही नहीं, बड़ी मुश्किल से गुजारा हो पाता है और कभी-कभी तो भूखे ही सोना पड़ता है इतना गरीब हुँ।”

भगवान गौतम बुद्ध शांत भाव से बोले- “तुम्हारे पास एक चेहरा है किसी को भी मुस्कराहट दे सकते हो, तुम्हारे पास मुँह है किसी को भी प्रशंसा भरे कुछ शब्द दे सकते हो, जो हाथ तुम्हारे पास है किसी की भी मदद कर सकते हो।” दरअसल जिस के पास में ये तीन चीजें हैं, वह भला कैसे गरीब हो सकता है?

गरीबी का भाव मन में होता है मन से यह भ्रम निकाल दो। लोगों को देते जाओ गरीबी अपने आप ही दूर हो जाएगी। यह बातें सुनकर उस गरीब का चेहरा दमक उठा। उसे अपने प्रश्न का उत्तर मिल चुका है। अब उसके मन से गरीबी का भाव दूर हो गया।

स शिक्षा को जीवन में उतार कर कुछ ही दिनों में उसका जीवन भी खुशियों से भर गया।

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जय श्रीराम

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
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