जय श्री राधे कृष्ण …..
“रिषि अगस्ति कीं साप भवानी, राछस भयउ रहा मुनि ग्यानी, बंदि राम पद बारहिं बारा, मुनि निज आश्रम कहुँ पगु धारा ।।
भावार्थ:– (शिव जी कहते हैं) हे भवानी ! वह ज्ञानी मुनि था, अगस्त ऋषि के शाप से राक्षस हो गया था । बार-बार श्री राम जी के चरणों की वंदना करके वह मुनि अपने आश्रम को चला गया…. ।।
सुप्रभात
आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो..