जय श्री राधे कृष्ण …..
“नाइ चरन सिरु चला सो तहाँ, कृपासिंधु रघुनायक जहाँ, करि प्रनामु निज कथा सुनाई, राम कृपा आपनि गति पाई ।।
भावार्थ:– वह भी (विभीषण की भाँति) चरणों में सिर नवा कर वहीं चला, जहाँ कृपा सागर श्री रघुनाथ जी थे। प्रणाम कर के उसने अपनी कथा सुनाई और श्री राम जी की कृपा से अपनी गति (मुनि का स्वरूप) पायी…… ।।
सुप्रभात
आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो..