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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-302

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जय श्री राधे कृष्ण …..

नाइ चरन सिरु चला सो तहाँ, कृपासिंधु रघुनायक जहाँ, करि प्रनामु निज कथा सुनाई, राम कृपा आपनि गति पाई ।।

भावार्थ:– वह भी (विभीषण की भाँति) चरणों में सिर नवा कर वहीं चला, जहाँ कृपा सागर श्री रघुनाथ जी थे। प्रणाम कर के उसने अपनी कथा सुनाई और श्री राम जी की कृपा से अपनी गति (मुनि का स्वरूप) पायी…… ।।

सुप्रभात

आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो..

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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