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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-293

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जय श्री राधे कृष्ण …..

तासु बचन सुनि सागर पाहीं, मागत पंथ कृपा मन माहीं, सुनत बचन बिहसा दससीसा, जौं असि मति सहाय कृत कीसा ।।

भावार्थ:– उनके (आपके भाई) के वचन सुन कर वे (श्री राम जी) समुद्र से राह माँग रहे हैं, उनके मन में कृपा भरी है (इसलिए वह उसे सोखते नहीं) । दूत के यह वचन सुनते ही रावण खूब हँसा (और बोला) जब ऐसी बुद्धि है, तभी तो वानरों को सहायक बनाया है…….!

सुप्रभात

आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो..

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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