जय श्री राधे कृष्ण …..
“नाथ दैव कर कवन भरोसा, सोषिअ सिंधु करिअ मन रोसा, कादर मन कहुँ एक अधारा, दैव दैव आलसी पुकारा ।।
भावार्थ:– (लक्ष्मण जी ने कहा) हे नाथ ! दैव का कौन भरोसा ! मन में क्रोध कीजिए (ले आइए) और समुद्र को सुखा डालिए। यह दैव तो कायर के मन का एक आधार (तसल्ली देने का उपाय) है। आलसी लोग ही दैव – दैव पुकारा करते हैं…….!!
सुप्रभात
आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो..