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गोपी और कृष्ण की अनोखी कथा …

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गोपी और कृष्ण की अनोखी कथा …

एक गोपी एक वृक्ष के नीचे ध्यान लगा बैठ जाती है। कान्हा को सदा ही शरारतें सूझती रहती हैँ। कान्हा कभी उस गोपी को कंकर मारकर छेड़ते हैं कभी उसकी चोटी खींच लेते हैं तो कभी अलग अलग पक्षियों और जानवरों की आवाज़ निकाल उसका ध्यान भंग करते हैं । गोपी खीझ कर कान्हा से कहती है। मोहन तुम मेरी ध्यान साधना में भंग क्यों डालते हो ,मुझे देवी के दर्शन करने हैँ। मुझे उनसे कुछ वर मांगना है । गोपी के मन में कान्हा के लिए इतना प्रेम है कि कान्हा से ही छिपा लेती है । कान्हा उस भोली गोपी को अपनी बातों में उलझा लेते हैं। अरी मूर्ख ! ऐसे ध्यान करने से ईश्वर नहीं मिलते । उनको प्रसन्न करने के लिए उनको बहुत कुछ खिलाना पड़ता है। तू कल सुबह बहुत सारे मिष्ठान ले मन्दिर में आना फिर मैं तुम्हें देवी दर्शन की विधि बताऊँगा। देवी प्रसन्न हो गई तो तुम्हें वर देंगी और तुम्हारी मनोकामना पूर्ण होगी।

अगले दिन प्रातः गोपी बहुत से मिष्ठान ले मन्दिर में पहुंच जाती है। देवी की प्रतिमा के समक्ष सब रख धूप दीप कर बैठ जाती है। कान्हा अपने सखाओं संग वहां पहुंच जाते हैं। गोपी कान्हा को देख बहुत प्रसन्न होती है। कान्हा बरसाना की ओर इशारा करके बोलते हैं उन देवी का स्थान जगत में सबसे ऊपर है। उनके दर्शन तो बड़े बड़े ऋषि मुनियों को दुर्लभ हैं। वो देवी तेरी मनोकामना पूर्ण करेंगी    परन्तु तुम्हें पहले मुझे प्रसन्न करना होगा तभी मैं तुमको देवी के दर्शन करवाऊंगा। कान्हा तुमको कैसे प्रसन्न करूँ। ये जो सब स्वादिष्ट मिष्ठान तू लाई है ये सब मुझे और मेरे सखाओं को खिला दे। नहीं कान्हा ये तो सब देवी पूजन हेतु है। चल छोड़ फिर तुझे देवी दर्शन नहीं हो सकता। अपनी कामना भूल जा तू। गोपी ये भी चाहती है कि उसके प्रियतम कान्हा ये सब मिष्ठान पा लें परन्तु मन में अभी देवी दर्शन की लालसा भी है। गोपी की स्थिति विचित्र हो रही है। कान्हा    कहते हैं गोपी देख मेरे पास शक्ति है मैं किसी भी देवी देवता को अपनी इच्छा अनुसार बुला सकता हूँ। कान्हा तुम मुझे मूर्ख बना रहे हो,अपने माखन से सने हुए मुख को साफ़ करने की शक्ति तो तुम में नहीं है। मैं ही मूर्ख रही जो तुम्हारी बातों में आ गयी । अब तुम भाग जाओ यहां से और मुझे देवी दर्शन करने दो।कान्हा ललचाई दृष्टि से मिष्ठान की और देखते हैं। गोपी खीझ कर उनको मारने को दौड़ती है।   

कान्हा उसको पकड़ लेते हैं और उसकी आँखें बन्द कर देते हैं । गोपी को श्री राधा के दिव्य स्वरूप् का दर्शन होता है गोपी उनको अपनी मनोकामना बताती हैं और श्री जू मन्द मन्द मुस्कुराती हैँ। वो उनका तेज सहन नहीं कर पाती और मूर्छित हो जाती हैं। कान्हा और उनकी शरारती मित्र मण्डली के शोर से चेतना लौटने पर एक बार तो गोपी बहुत प्रसन्न होती है। उसको देवी दर्शन की स्मृति रहती है ।परन्तु अपने खाली बर्तन और सब मिठाई खत्म देख वो अत्यंत क्रोधित हो जाती है और उन सबको मारने को दौड़ती है।

भोली गोपी क्या जानती है कि जिसे वो प्रेम भी करती है और जिसकी ऊधम से भी खीझ जाती है वही पूर्ण परमेश्वर हैँ जो उसकी मनोकामना को पूर्ण करने हेतु उसे कैसे भी ठग लेते हैँ।

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जय श्रीराम

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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