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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-264

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जय श्री राधे कृष्ण …..

सुनु कपीस लंकापति बीरा, केहि बिधि तरिअ जलधि गंभीरा, संकुल मकर उरग झष जाती, अति अगाध दुस्तर सब भांती ।।

भावार्थ:– हे वीर वानर राज सुग्रीव और लंकापति विभीषण ! सुनो, इस गहरे समुद्र को किस प्रकार पार किया जाए ? अनेक जाति के मगर, सांप और मछलियों से भरा हुआ यह अत्यंत अथाह समुद्र पार करने में सब प्रकार से कठिन है…!

सुप्रभात

आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो..

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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