जय श्री राधे कृष्ण …..
“सुनहु देव सचराचर स्वामी, प्रनतपाल उर अंतरजामी, उर कछु प्रथम बासना रही, प्रभु पद प्रीति सरित सो बही ।।
भावार्थ:– (विभीषण जी ने कहा) हे देव! हे चराचर जगत के स्वामी ! हे शरणागत के रक्षक ! सबके हृदय के भीतर की जानने वाले! सुनिए, मेरे हृदय में पहले कुछ वासना थी, वह प्रभु के चरणों की प्रीति रूपी नदी में बह गयी ….!
सुप्रभात
आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो..
