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Quotes

सुविचार-सुन्दरकाण्ड-241

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जय श्री राधे कृष्ण …..

नाथ दसानन कर मैं भ्राता, निसिचर बंस जनम सुरत्राता, सहज पापप्रिय तामस देहा, जथा उलूकहि तम पर नेहा ।।

भावार्थ:– हे नाथ ! मैं दशमुख रावण का भाई हूँ । हे देवताओं के रक्षक ! मेरा जन्म राक्षस कुल में हुआ है । मेरा तामसी शरीर है, स्वभाव से ही मुझे पाप प्रिय हैं, जैसे उल्लू को अन्धकार पर सहज स्नेह होता है…….!

सुप्रभात

आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो..

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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