प्रेम और स्वास्थ्य
आज हर मनुष्य को कोई ना कोई रोग लगा हुआ है । एक रोग का इलाज करवाते है तो दूसरा रोग उठ खड़ा होता है । रोग की जड़ हमारे विचार है । मुझे जल्दी सर्दी हो जाती है, मेरा हाजमा खराब रहता है । वजन कम करना मेरे लिये मुश्किल है । मुझे इस से अलेरजी होती है । काफी से मुझे नींद नही आती ।
इस का मतलब है कि हम निर्णय कर चुके है, हम मान चुके है कि अमुक कारणों से मेरा स्वास्थ्य खराब रहता है । प्रेम के नियम अनुसार हमारा विश्वास ही रोगॊ को निमंत्रण दे रहा है! प्रेम का नियम कहता है कि सदा सोचो मै स्वस्थ हूँ, मै आत्मा हूँ, अजर अमर हूँ, मै सदा जवान हूँ तो यह विचार आप को सदा नीरोगी रखेगा ।
चाहे कितना भी रोग हो प्यार से सोचो मै ठीक हो रहा हूँ । प्रेम के विचारो से शरीर को शक्ति मिलती है । नाकारात्मक विचारो से स्नायु सिकुड़ जाते है । शरीर की रसायनिक क्रिया बिगड़ जाती है । खून की नसो पर बुरा असर पड़ता है । साँस कम या ज्यादा हो जाती है । शरीर में कमजोरी आने लगती है । इस तरह रोग उत्पन होने लगते है ।
मन और शरीर आपस में गुथे हुये है ।
हमारे शरीर में अनेक नस नाड़ीया है जो शरीर के रख रखाव में लगी रहती है । हम जो सोचते है वा बोलते है या महसूस करते है, कोशिकाये उसी अनुसार काम करती है । कोशिकाये हमारे मन की आज्ञाकारी सेवक है ।
यात्रा के समय मुझे उल्टी आती है, थकावट हो जाती है । कोशिकाये ये बात सुन लेती है और यात्रा के समय वही करने लगती है । प्रेम से हर अंग के आदर्श चित्र को देखते रहो तो रोग कभी नही होगा ।
जिन अंगो में रोग है, प्रेम से सोचते रहो कि वह ठीक हो रहे है । तो धीरे धीरे वह ठीक हो जायेगे ।
मुझ में बच्चो जैसी फुर्ती है, गहरी नींद आती है, मै शक्तिशाली हूँ तो कोशिकाये आप के लिये वैसा ही बल उत्पन्न करने लगती है ।
दिल का चुम्बकीय क्षेत्र हमारे दिमाग के चुम्बकीय क्षेत्र से 5000 गुणा अधिक है और इसका प्रभाव कइ फुट तक फैला रहता है
जय श्रीराम