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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-235

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जय श्री राधे कृष्ण …..

जग महुँ सखा निसाचर जेते, लछिमनु हनइ निमिष महुँ तेते, जौं सभीत आवा सरनाईं, रखिहउँ ताहि प्रान की नाईं।।

भावार्थ:– क्योंकि हे सखे ! जगत में जितने भी राक्षस हैं, लक्ष्मण क्षण भर में उन सब को मार सकते हैं, और यदि वह भयभीत हो कर मेरी शरण में आया है, तो मैं उसे प्राणों की तरह रखूँगा….!!

सुप्रभात

आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो..

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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