जय श्री राधे कृष्ण …..
“*निर्मल मन जन सो पावा, मोहि कपट छल छिद्र न भावा, भेद लेन पठवा दससीसा, तबहुँ न कछु भय हानि कपीसा ।।
भावार्थ:– जो मनुष्य निर्मल मन का होता है, वही मुझे पाता है । मुझे कपट और छल – छिद्र नहीं सुहाते । यदि उसे रावण ने भेद लेने को भेजा है, तब भी हे सुग्रीव ! अपने को कुछ भी भय या हानि नहीं है….!!
सुप्रभात
आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो..
