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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-230

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जय श्री राधे कृष्ण …..

भेद हमार लेन सठ आवा, राखिअ बाँधि मोहि अस भावा, सखा नीति तुम्ह नीकि बिचारी, मम पन सरनागत भयहारी ।।

भावार्थ:– (जान पड़ता है) यह मूर्ख हमारा भेद लेने आया है । इसलिए मुझे तो यही अच्छा लगता है कि इसे बाँध रखा जाए । (श्रीराम जी ने कहा) हे मित्र! तुमने नीति तो अच्छी विचारी । परन्तु मेरा प्रण तो है शरणागत के भय को हर लेना …!!

सुप्रभात

आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो..

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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