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भक्ति-और-भगवान

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भक्ति-और-भगवान

एक राजा था जो एक आश्रम को संरक्षण दे रहा था यह आश्रम एक जंगल में था इसके आकार और इसमें रहने वालों की संख्या में लगातार बढ़ोत्तरी होती जा रही थी और इसलिए राजा उस आश्रम के लोगों के लिए भोजन और वहां की इमारत आदि के लिए आर्थिक सहायता दे रहा था यह आश्रम बड़ी तेजी से विकास कर रहा था जो योगी इस आश्रम का सर्वेसर्वा था वह मशहूर होता गया और राजा के साथ भी उसकी अच्छी नजदीकी हो गई ज्यादातर मौकों पर राजा उसकी सलाह लेने लगा ऐसे में राजा के मंत्रियों को ईर्ष्या होने लगी और वे असुरक्षित महसूस करने लगे.

एक दिन उन्होंने राजा से बात की – ‘हे राजन, राजकोष से आप इस आश्रम के लिए इतना पैसा दे रहे हैं आप जरा वहां जाकर देखिए तो सही वे सब लोग अच्छे खासे, खाते-पीते नजर आते हैं वे आध्यात्मिक लगते ही नहीं’ राजा को भी लगा कि वह अपना पैसा बर्बाद तो नहीं कर रहा है, लेकिन दूसरी ओर योगी के प्रति उसके मन में बहुत सम्मान भी था उसने योगी को बुलवाया और उससे कहा- ‘मुझे आपके आश्रम के बारे में कई उल्टी-सीधी बातें सुनने को मिली हैं ऐसा लगता है कि वहां अध्यात्म से संबंधित कोई काम नहीं हो रहा है वहां के सभी लोग अच्छे-खासे मस्तमौला नजर आते हैं ऐसे में मुझे आपके आश्रम को पैसा क्यों देना चाहिए?’ योगी बोला- ‘हे राजन, आज शाम को अंधेरा हो जाने के बाद आप मेरे साथ चलें मैं आपको कुछ दिखाना चाहता हूं।’

रात होते ही योगी राजा को आश्रम की तरफ लेकर चला राजा ने भेष बदला हुआ था सबसे पहले वे राज्य के मुख्यमंत्री के घर पहुंचे दोनों चोरी-छिपे उसके शयनकक्ष के पास पहुंचे उन्होंने एक बाल्टी पानी उठाया और उस पर फेंक दिया मंत्री चौंककर उठा और गालियां बकने लगा वे दोनों वहां से भाग निकले फिर वे दोनों एक और ऐसे शख्स के यहां गए जो आश्रम को पैसा न देने की वकालत कर रहा था वह राज्य का सेनापति था। दोनों ने उसके भी शयनकक्ष में झांका और एक बाल्टी पानी उस पर भी उड़ेल दिया वह व्यक्ति और भी गंदी भाषा का प्रयोग करने लगा इसके बाद योगी राजा को आश्रम ले कर गया बहुत से संन्यासी सो रहे थे.

भक्ति का अर्थ मंदिर जा कर राम-राम कहना नहीं है वो इन्सान जो अपने एकमात्र लक्ष्य के प्रति एकाग्रचित है, वह जो भी काम कर रहा है उसमें वह पूरी तरह से समर्पित है, वही सच्चा भक्त है

उन्होंने एक संन्यासी पर पानी फेंका वह चौंककर उठा और उसके मुंह से निकला – शिव-शिव फिर उन्होंने एक दूसरे संन्यासी पर इसी तरह से पानी फेंका उसके मुंह से भी निकला – हे शंभो। योगी ने राजा को समझाया – ‘महाराज, अंतर देखिए ये लोग चाहे जागे हों या सोए हों, इनके मन में हमेशा भक्ति रहती है आप खुद फर्क देख सकते हैं।’ तो भक्त ऐसे होते हैं.

भक्त होने का मतलब यह कतई नहीं है कि दिन और रात आप पूजा ही करते रहें भक्त वह है जो बस हमेशा लगा हुआ है,अपने मार्ग से एक पल के लिए भी विचलित नहीं होता

भक्ति का अर्थ मंदिर जा कर राम-राम कहना नहीं है वो इन्सान जो अपने एकमात्र लक्ष्य के प्रति एकाग्रचित है,वह जो भी काम कर रहा है उसमें वह पूरी तरह से समर्पित है,वही सच्चा भक्त है उसे भक्ति के लिए किसी देवता की आवश्यकता नहीं होती और वहां ईश्वर मौजूद रहेंगे भक्ति इसलिए नहीं आई,क्योंकि भगवान हैं चूंकि भक्ति है इसीलिए भगवान है..!!

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जय श्रीराम

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
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