जय श्री राधे कृष्ण …….
“चौदह भुवन एक पति होई, भूत द्रोह तिष्टइ नहिं सोई, गुन सागर नागर नर जोऊ, अलप लोभ भल कहइ न कोऊ ।।
भावार्थ:– चौदहों भुवनों का एक ही स्वामी हो, वह भी जीवों से वैर करके ठहर नहीं सकता (नष्ट हो जाता है) । जो मनुष्य गुणों का समुद्र और चतुर हो, उसे चाहे थोड़ा भी लोभ क्यों न हो, तो भी कोई भला नहीं कहता……!!
सुप्रभात
आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो..
