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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-204

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जय श्री राधे कृष्ण …….

चौदह भुवन एक पति होई, भूत द्रोह तिष्टइ नहिं सोई, गुन सागर नागर नर जोऊ, अलप लोभ भल कहइ न कोऊ ।।

भावार्थ:– चौदहों भुवनों का एक ही स्वामी हो, वह भी जीवों से वैर करके ठहर नहीं सकता (नष्ट हो जाता है) । जो मनुष्य गुणों का समुद्र और चतुर हो, उसे चाहे थोड़ा भी लोभ क्यों न हो, तो भी कोई भला नहीं कहता……!!

सुप्रभात

आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो..

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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