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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-202

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जय श्री राधे कृष्ण …….

पुनि सिरु नाइ बैठ निज आसन, बोला बच पाइ अनुसासन, जौ कृपाल पूँछिहु मोहि बाता, मति अनुरूप कहउँ हित ताता ।।

भावार्थ:– फिर वे सिर नवा कर अपने आसन पर बैठ गये और आज्ञा पाकर ये वचन बोले – हे कृपालु! जब आप ने मुझ से बात (राय) पूछी ही है तो हे तात! मैं अपनी बुद्धि के अनुसार आप के हित की बात कहता हूँ…!!

सुप्रभात

आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो..

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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