जय श्री राधे कृष्ण …….
“रहसि जोरि कर पति पग लागी, बोली बचन नीति रस पागी, कंत करष हरि सन परिहरहू, मोर कहा अति हित हियँ धरहू ।।
भावार्थ:– वह एकांत में हाथ जोड़ कर पति (रावण) के चरणों लगी और नीति रस में पगी हुई वाणी बोली- हे प्रियतम! श्री हरि से विरोध छोड़ दीजिये । मेरे कहने को अत्यंत ही हित कर जान कर हृदय में धारण कीजिये……!!
सुप्रभात
आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो..