पुन्य तपोबल एकत्रित करो
एक सेठ के एक इकलौता पुत्र था पर छोटी सी उम्र मे ही गलत संगत के कारण राह भटक गया!
चिंतित सेठ को कुछ नही सूझ रहा था। तो वो भगवान् के मन्दिर में गया और दर्शन के बाद पुजारी जी को अपनी समस्या बताई !
पुजारी जी ने कहा की आप अपने पुत्र को कुछ दिन मन्दिर में भेजना कोशिश पुरी करेंगे की आपकी समस्या का समाधान हो, आगे जैसी हरि की ईच्छा !
सेठ ने पुत्र से कहा की तुम्हे कुछ दिनो तक मन्दिर जाना है, नही तो तुम्हे सम्पति से बेदखल कर दिया जायेगा…
घर से मन्दिर की दूरी ज्यादा थी और सेठ उसे किराये के गिनती के पैसे देते थे! अब वो एक तरह से बंदिश मे आ गया!
मंदिर के वहाँ एक वृद्ध बैठा रहता था और एक अजीब सा दर्द उसके चेहरे पर था और रोज वो बालक उस वृद्ध को देखता।
एक दिन मन्दिर के वहाँ बैठे उस वृद्ध को देखा तो उसे मस्ती सूझी और वो वृद्ध के पास जाकर हँसने लगा…
उसने वृद्ध से पुछा हॆ वृद्ध पुरुष तुम यहाँ ऐसे क्यों बैठे रहते हो.. लगता है बहुत दर्द भरी दास्तान है तुम्हारी और व्यंग्यात्मक तरीके से कहा शायद बड़ी भूलें की है जिंदगी मे?
उस वृद्ध ने जो कहा उसके बाद उस बालक का पूरा जीवन बदल गया!
उस वृद्ध ने कहा हाँ बेटा हँस लो आज तुम्हारा समय है.. पर याद रखना की जब समय बदलेगा तो एक दिन कोई ऐसे ही तुम पर हँसेगा!
सुनो बेटा मैं भी खुब दौड़ा.. मेरे चार चार बेटे है और उन्हे जिंदगी मे इस लायक बनाया की आज वो बहुत ऊँचाई पर है..
और इतनी ऊँचाई पर है वो की आज मैं उन्हे दिखाई नही देता हुं! और मेरी सबसे बड़ी भुल ये रही की मैंने अपने बारे मे कुछ भी न सोचा!
अपने इन अंतिम दिनो के लिये कुछ धन अपने लिये बचाकर न रखा। इसलिये आज मैं एक पराधीनता का जीवन जी रहा हुं!
पर मुझे तो अब इस मुरलीधर ने सम्भाल लिया। यहाँ तो पराधीन हुआ हुं..किन्तु डर ये है कही आगे जाकर भी पराधीन न हो जाऊँ!
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बालक को उन शब्दो ने झकझोर कर रख दिया!
बालक – मैंने जो अपराध किया है उसके लिये मुझे क्षमा करना हॆ देव! पर हॆ देव आपने कहा की आगे जाकर पराधीन न रहूँ ये मेरी कुछ समझ मे न आया?
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वृद्ध – हॆ वत्स यदि तुम्हारी जानने की इच्छा है तो बिल्कुल सावधान होकर सुनना..
अनन्त यात्रा का एक पड़ाव मात्र है ये मानवदेह,,,और पराधीनता से बड़ा कोई अभिशाप नही है,, और आत्मनिर्भरता से बड़ा कोई वरदान नही है!
अभिशाप की जिन्दगी से मुक्ति पाने के लिये कुछ न कुछ दान- धर्म, जप-तपअवश्य करते रहना! धन शरीर के लिये तो दान-धर्म, जप-तप आत्मा के लिये बहुत जरूरी है!
दान-धर्म के साथ नियमित साधना से तपोधन जोड़िये.. आगे की यात्रा मे बड़ा काम आयेगा!
क्योंकि जब तुम्हारा अंतिम समय आयेगा.. यदि देह का अंतिम समय है तो धन बड़ा सहायक होगा.. और देह समाप्त हो जायेगी तो फिर आगे की यात्रा शुरू हो जायेगी और वहाँ दान- धर्म, तपोधन बड़ा काम आयेगा!
और हाँ एक बात अच्छी तरह से याद रखना की धन तो केवल यहाँ काम आयेगा पर दान-धर्म, तपोधन यहाँ भी काम आयेगा और वहाँ भी काम आयेगा!
और यदि तुम पराधीन हो गये तो तुम्हारा साथ देने वाला कोई न होगा!
उसके बाद उस बालक का पुरा जीवन बदल गया!
इसलिये दान-धर्म और नियमित साधना से तपोधन एकत्रित करो..!!
*प्रत्येक मनुष्य को जीवन मे दान-धर्म सत्कर्म अपनी सामर्थ्य अनुसार अवश्य करते रहना चाहिए,,दान से कभी धन नही घटता अपितु उसमे दिनों दिन वृद्धि होती है,,इस लोक में भी और उस लोक में भी,, आपके द्वारा किया गया दान-धर्म-सत्कर्म ही अंतिम यात्रा में काम आएगा वँहा कोई साथ नही जाएगा आपके पूण्य ही आपके साथ जाएंगे,,गरुड़ पुराण आपने अवश्य सुनी होगी,,उसमे पूर्ण विस्तार से इसके विषय मे लिखा है,,वैतरणी नदी जो उस यात्रा में सबसे दुर्गम है उसे गौमाता बड़ी सरलता से हमारे सूक्ष्म शरीर को पार करा देती है,,जिसके लिए अंतिम समय मे मनुष्य को गाय की पूंछ आजकल लोग पकड़वाते है,,लेकिन क्या अंत मे गाय की पूंछ पकड़ने से गौमाता आपको वैतरणी नदी से पार लगा देगी,,नही,,कदाचित नही,,गौमाता उसे ही पार लगाएगी जिसने पूरे जीवन गौमाता की सेवा की हो,,,इसलिए शास्त्रों के गौदान को महादान कहा गया है,,इसलिए जो समर्थ हैं उन्हें अपने नाम से कम से कम एक गौमाता का दान अवश्य करना ही चाहिए,,और जो नही कर सकते वो गौसेवा करे किसी भी रूप में,,, तन से अपनी निकटम गौशाला में जा कर सेवा कर सकते है,,धन से कर सकते है,,भूसा चारा राशन डलवा सकते है,,प्रत्येक को कुछ न कुछ गौसेवा अवश्य करनी ही चाहिए..
जय श्रीराम