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Quotes

सुविचार-सुन्दरकाण्ड-170

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जय श्री राधे कृष्ण …….

सुनु सुत तोहि उरिन मैं नाहीं, देखेउँ करि बिचार मन माहीं, पुनि पुनि कपिहि चितव सुरत्राता, लोचन नीर पुलक अति गाता ।।

भावार्थ:– हे पुत्र! सुन, मैंने मन में (खूब) विचार कर के देख लिया कि मैं तुझसे उऋण नहीं हो सकता । देवताओं के रक्षक प्रभु बार-बार हनुमान जी को देख रहे हैं । नेत्रों में प्रेमाश्रुओं का जल भरा है और शरीर अत्यंन्त पुलकित है…..!!

सुप्रभात

आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो..

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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