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श्रद्धा न बदले-मैं काल हु

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श्रद्धा न बदले-मैं काल हु

भगवान कहते हैं भक्त को अपने नियम और श्रद्धा नही बदलनी चाहिए, भले ही उस पर कितने ही कष्ट आये। मैं तुम्हारे सारे कार्य समय आने पर सिद्ध कर दूंगा।

एक व्यक्ति सुबह सवेरे उठा साफ़ कपड़े पहने और भगवान जी के दर्शन के लिए मन्दिर की और चल दिया ताकि भगवान जी के दर्शन कर आनंद प्राप्त कर सके। चलते चलते मार्ग में ठोकर खाकर गिर पड़ा। कपड़े कीचड़ से सन गए वापस घर आया। कपड़े बदलकर वापस मन्दिर की और रवाना हुआ फिर ठीक उसी स्थान पर ठोकर खा कर गिर पड़ा और वापस घर आकर कपड़े बदले। फिर मन्दिर की और रवाना हो गया।

जब तीसरी बार उस स्थान पर पहुंचा तो क्या देखता है की एक व्यक्ति चिराग हाथ में लिए खड़ा है और उसे अपने पीछे पीछे चलने को कह रहा है।इस तरह वो शख्स उसे मन्दिर के द्वार तक ले आया। पहले वाले व्यक्ति ने उससे कहा आप भी अंदर आकर दर्शन का लाभ लें, लेकिन वो व्यक्ति चिराग हाथ में थामे खड़ा रहा और मन्दिर में दाखिल नही हुआ। दो तीन बार मना करने पर उसने पूछा आप अंदर क्यों नही आ रहे है?

दूसरे वाले व्यक्ति ने उत्तर दिया “इसलिए क्योंकि मैं काल हूँ,।

ये सुनकर पहले वाले व्यक्ति की हैरत का ठिकाना न रहा। काल ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा मैं ही था जिसने आपको भूमि पर गिराया था। जब आपने घर जाकर कपड़े बदले और पुनः मन्दिर की और रवाना हुए तो भगवान ने आपके सारे पाप क्षमा कर दिए। जब मैंने आपको दूसरी बार गिराया और आपने घर जाकर फिर कपड़े बदले और फिर दुबारा जाने लगे तो भगवान ने आपके पूरे परिवार के पाप क्षमा कर दिए। मैं डर गया की अगर अबकी बार मैंने आपको गिराया और आप फिर कपड़े बदलकर चले गए तो कहीं ऐसा न हो वह आपके सारे गांव के लोगो के पाप क्षमा कर दे, इसलिए मैं यहाँ तक आपको स्वंय पहुंचाने आया हूँ।

अब हम देखे कि उस व्यक्ति ने दो बार गिरने के बाद भी हिम्मत नहीं हारी और तीसरी बार फिर पहुँच गया और एक हम हैं यदि हमारे घर पर कोई मेहमान आ जाए या हमें कोई काम आ जाए तो उसके लिए हम सत्संग छोड़ देते हैं, भजन जाप छोड़ देते हैं।क्यों.???

क्योंकि हम जीव अपने भगवान से ज्यादा दुनिया की चीजों और रिश्तेदारों से ज्यादा प्यार करते हैं,,उनसे ज्यादा मोह हैं। इसके विपरीत वह व्यक्ति दो बार कीचड़ में गिरने के बाद भी तीसरी बार फिर घर जाकर कपड़े बदलकर मन्दिर चला गया। क्यों…???

क्योंकि उसे अपने दिल में भगवान के लिए बहुत प्यार था। वह किसी कीमत पर भी अपनी बंदगीं का नियम टूटने नहीं देना चाहता था। इसीलिए काल ने स्वयं उस व्यक्ति को मंजिल तक पहुँचाया, जिसने कि उसे दो बार कीचड़ में गिराया था।

जय श्रीराम

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
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