जय श्री राधे कृष्ण …….
“रहा न नगर बसन घृत तेला, बाढ़ी पूँछ कीन्ह कपि खेला, कौतुक कँह आए पुरबासी, मारहिं चरन करहिं बहु हाँसी ।।
भावार्थ:- (पूँछ के लपेटने में इतना कपड़ा और घी – तेल लगा कि) नगर में कपड़ा, घी और तेल नहीं रह गया । हनुमान जी ने ऐसा खेल किया कि पूँछ बढ़ गयी (लंबी हो गयी) । नगर वासी लोग तमाशा देखने आए । वे हनुमान जी (की बढी पूँछ) को पैर से ठोकर मारते हैं और उनकी बहुत हंसी करते हैं…. ।।
सुप्रभात
आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो..
