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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-117

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जय श्री राधे कृष्ण …….

जानउँ मैं तुम्हारि प्रभुताई, सहसबाहु सन परी लराई, समर बालि सन करि जसु पावा, सुन कपि बचन बिहसि बिहरावा ।।

भावार्थ:- मैं तुम्हारी प्रभुता को खूब जानता हूँ, सहस्त्रबाहु से तुम्हारी लड़ाई हुईं थी और बालि से युद्ध कर के तुम ने यश प्राप्त किया था । हनुमान जी के (मार्मिक) वचन सुन कर रावण ने हंस कर बात टाल दी……!!

सुप्रभात

आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो..

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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