जय श्री राधे कृष्ण …….
“मारे निशिचर केहिं अपराधा, कहु सठ तोहि न प्रान कइ बाधा, सुनु रावन ब्रह्मांड निकाया, पाइ जासु बल बिरचति माया…..।।
भावार्थ:– तूने किस अपराध से राक्षसों को मारा ? रे मूर्ख! बता, क्या तुझे प्राण जाने का भय नहीं है ? (हनुमान जी ने कहा) हे रावण! सुन, जिन का बल पा कर, माया सम्पूर्ण ब्रम्हाण्ड के समूहों की रचना करती है…….!!
सुप्रभात
आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो..
