जय श्री राधे कृष्ण …….
“कर जोरे सुर दिसिप बिनीता, भृकुटि बिलोकत सकल सभीता, देखि प्रताप न कपि मन संका, जिमि अहिगन महुँ गरुड़ असंका ।।
भावार्थ:- देवता और दिक्पाल हाथ जोड़े बड़ी नम्रता के साथ भयभीत हुए सब रावण की भौं ताक रहे हैं (उसका रुख देख रहे हैं) । उस का ऐसा प्रताप देख कर भी हनुमान जी के मन में जरा भी डर नहीं हुआ । वे ऐसे निशंक खड़े रहे जैसे सर्पों के समूह में गरुड़ निशंक (निर्भय) रहते हैं……!!
सुप्रभात
आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो..
