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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-108

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जय श्री राधे कृष्ण …….

जासु नाम जपि सुनहु भवानी, भव बंधन काटहिं नर ग्यानी, तासु दूत कि बंध तरु आवा, प्रभु कारज लगि कपिहिं बंधावा ।।

भावार्थ:- (शिवजी कहते हैं) हे भवानी! सुनो, जिन का नाम जप कर ज्ञानी (विवेकी) मनुष्य संसार (जन्म-मरण) के बंधन को काट डालते हैं, उन का दूत कहीं बंधन में आ सकता है ? किन्तु प्रभु के कार्य के लिए हनुमान जी ने स्वयं अपने को बंधा लिया…!!

सुप्रभात

आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो..

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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