lalittripathi@rediffmail.com
Quotes

जैकेट का सही माप

260Views

जैकेट का सही माप

शर्मा जी सुबह सुबह अपने दफ़्तर के लिए निकलने वाले थे। तभी अचानक क्षितिज ने एक पैकेट उनके सामने कर दिया..पापा ! वापस करना है ये जैकेट….‛क्यों?’…..‛फिट नहीं हो रहा..ज़्यादा टाइट है।’ लंच बॉक्स देते हुए मां तमतमाई..अरे शर्मा जी! आप भी न..! बेटा बड़ा हो गया है औऱ पहले से ज़्यादा तगड़ा भी, अब थोड़ा बड़ा साइज का जैकेट ही पहनेगा ना.. क़भी कुछ ख़याल तो रहता नहीं आपको… !  फिर से आप उसके लिए पुराना साइज ले आएँ होंगे ।  इतना महंगा वाला जैकेट लाने से पहले एक बार उससे पूछ भी लिया होता। लेकिन अपनी पत्नी की बातों को बेहद गौर से सुनने के बाद भी शर्मा जी की आंखों में अपने लाड़ले के लिए अविश्वास दिखा.. क्षितिज ने बात ही ऐसी की थी… क्योंकि शर्मा जी ये भली भांति जानते थे कि उनका औऱ उनके बेटे का साइज़ एक ही है ।

‘बेटा ! इस बार भी इंटरव्यू में वही पुराना जैकेट…रूक गए शर्मा जी… शायद उनका गला भर आया था । ‛छोड़िए न पापा ! इंटरव्यू ही तो देना है , कोई फ़ैशन शो में थोड़े न जाना है मुझें । आख़िर क्या फर्क पड़ता है ! जीवन की राह नई है और मंजिल नई , जैकेट पुराना ही सही।’,,

दरअसल क्षितिज की नज़र अपने पिता की बहुत पुरानी स्वेटर पर थी जो उसके पुराने जैकेट से भी कहीं ज़्यादा फटेहाल थी। उसके पिता प्रतिदिन दफ़्तर से घर देर रात तक पहुँचते थे और सर्दियां शुरू हो चुकी थीं । शर्मा जी ने अपनी लाचारी बतानी शुरू की….लेकिन बेटे, पैसे तो वापस नहीं मिलेंगे , ऐसा करते हैं शाम को हम दोनों एक साथ चलेंगे..इन्हें बदलकर तुम्हारे लिए दूसरी ले आएंगे । नहीं पापा , मेरे पास बिलकुल भी इस काम के लिए वक़्त नहीं है , मुझें अपने अगले इंटरव्यू की तैयारी पर फ़ोकस करना है….इस बार मुझें माफ़ कीजिए प्लीज । वो इतना बोलकर अपने कमरे की ओर बढ़ गया ।

अब शर्मा जी की पत्नी ने उनसे कहा….ए जी , अगर ये जैकेट आपमें फिट आएगा तो इसे अपने लिए भी रख सकते हैं क्योंकि इसका कलर औऱ डिजाइन मुझें बहुत पसंद आ रहा है । पत्नी की ज़िद पर बेचारगी में शर्मा जी ने जब उस जैकेट को नापना शुरू किया तो उन्हें बिलकुल फिट आ गया…. हालांकि उन्होंने जैकेट अपने साइज़ का ही लिया था क्योंकि दोनों बाप बेटे का माप एक था ।

मजबूरी में कोई चारा न देख शर्मा जी नया जैकेट पहनकर अपने मन में कुछ कुछ सोंचते हुए दफ़्तर के लिए निकल गए । उनके जाने के बाद माँ ने क्षितिज को आवाज़ देकर अपने पास बुलाया औऱ फ़िर उसके माथे को चूमते हुए अपनी डबडबाई आँखों को छुपाकर उससे कहा…..देखते देखते अब काफ़ी बड़ा हो गया है तू मुन्ना ………!!

क्षितिज भी अपने आंसू रोक न पाया औऱ अपनी माँ से लिपटकर बुदबुदाया..मेरी हर जरूरत का ख़याल रखने वाले मेरे पापा कभी गलत साइज़ ला ही नहीं सकते, लेकिन अगर वो जैकेट मैं पहनता तो मुझे चुभता बहुत चुभता..!!

जय श्रीराम

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

2 Comments

Leave a Reply