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श्री कृष्ण-अर्जुन संवाद:-

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श्री कृष्ण-अर्जुन संवाद:-
अर्जुन ने पूछा- हे गोविंद! जैसे अग्नि को हाथ लगाने से तुरंत मनुष्य का हाथ जल जाता है, ठीक वैसे ही बुरा कर्म करने पर मनुष्य को उस कर्म का फल उसी समय क्यों नहीं मिल जाता है?….श्री कृष्ण ने कहा- ऐसा इसलिए संभव नहीं हो पाता है क्योंकि यह प्रकृति के नियमों के विरुद्ध है।
अर्जुन ने पूछा- परंतु वह कैसे वासुदेव?….श्री कृष्ण ने कहा- हे अर्जुन! मनुष्य का प्रत्येक कर्म एक बीज के समान होता है। जैसे “अच्छे-कर्म” के लिए अच्छा बीज होता है वैसे ही “बुरे-कर्म” के लिए बुरा बीज होता है। अब इसमें समझने वाली बात यह है कि मनुष्य को बीज बोने में तो कोई अधिक समय नहीं लगता है परंतु उस बीज का फल आने में एक निश्चित अवधि का समय लग जाता है।
ठीक इसी प्रकार से उसके द्वारा किए गए किसी भी कर्म का फल आने में भी एक निश्चित अवधि का समय लग जाता है। अर्जुन ने पूछा- परंतु यह निश्चित अवधि का समय क्यों?…..श्री कृष्ण ने कहा- क्योंकि प्रकृति किसी भी मनुष्य को उसके द्वारा किए गए पाप-कर्म का फल उसी समय देकर उसके साथ अन्याय नहीं कर सकती। बल्कि वह हर मनुष्य को उसकी गलती का “पश्चाताप” करने और उसको सुधारने का अवसर अवश्य देती है।
इसी कारण से किसी मनुष्य द्वारा किए गए बुरे-कर्म के फल को आने में एक निश्चित अवधि का समय लग जाता है।
यदि इस निश्चित समय अवधि के दौरान मनुष्य अपनी गलती का “पश्चाताप” करके उसे सुधार लेता है तो वह उस पाप-कर्म के फल को भोगने से बच सकता है। अन्यथा उसे पाप-कर्म के फल को भोगने से कोई नहीं बचा सकता है, उसे भविष्य में उसका फल भोगना ही पड़ता है।
जय श्रीराम

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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