जय श्री राधे कृष्ण …….
“निसिचर निकर पतंग सम रघुपति बान कृसानु, जननी हृदयँ धीर धरु जरे निसाचर जानु……!!
भावार्थ:- राक्षसों के समूह पतंगों के समान और श्री रघुनाथ जी के बाण अग्नि के समान हैं। हे माता! हृदय में धैर्य धारण करो और राक्षसों को जला ही समझो……!!
दीन दयाल बिरिदु संभारी ।
हरहु नाथ मम संकट भारी ।।
सुप्रभात
आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो..
