lalittripathi@rediffmail.com
Quotes

सुविचार-सुन्दरकाण्ड-82

142Views

जय श्री राधे कृष्ण …….

कुबलय बिपिन कुंत बन सरिसा, बारिद तपत तेल जनु बरिसा, जे हित रहे करत तेई पीरा, उरग स्वास सम त्रिबिध समीरा…..!!

भावार्थ:- और कमलों के वन भालों के वन के समान हो गए हैं । मेघ मानो खौलता हुआ तेल बरसाते हैं। त्रिविध (शीतल, मंद, सुगंध) वायु सांप के श्वास के समान (जहरीली और गरम) हो गई है ….!!

सुप्रभात

आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो..

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

Leave a Reply